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(अ) प्रिय अपर जिलाधिकारी के नाम खुला पत्र !

 


 

(अ) प्रिय अपर जिलाधिकारी जी,


                            संबोधन से ही बात शुरू कर लेते हैं. आम तौर पर चलन है कि पत्र लिखते हुए-प्रिय- संबोधन से बात शुरू की जाये. लिखना प्रिय ही चाहता था, लेकिन बात आपने ऐसी कर दी कि आपके प्रिय होने के बोध का ह्रास होता रहा ! अफसर वैसे भी सत्ता को ही प्रिय हो सकता है, इसलिए कि वह जी हजूरी करता है या वह कमाऊ पूत होता है !


 फिर भी चाह थी कि रिवायत के अनुसार प्रिय से बात शुरू की जाये ! लेकिन आपने बात ऐसी कर दी कि प्रिय के आगे कोष्ठक में यह नामुराद- अ- अड़ के खड़ा हो गया. अब जब यह- अ- आ ही गया है तो आपसे निवेदन है कि इस पत्र में प्रिय से पहले कोष्ठक में लिखे गए- अ-को भी अवश्य पढ़ें !


यूं आपके बात से और चेहरे के हावभाव से भी जाहिर होता ही है कि आम जन आपको कतई प्रिय नहीं हैं. तो मेरे प्रिय लिख देने से भी कोई आप जनता को प्रिय तो समझने लगेंगे नहीं तो हम ही आपको प्रिय क्यूं संबोधित करें !


अर्ज यह करना था हुजूर कि जिस पद पर आप बैठे हैं, उसका नाम है अपर जिलाधिकारी. उत्तराखंड जब उत्तर प्रदेश का अंग होता था तो इसी पद का नाम होता था- अतिरिक्त जिलाधिकारी ! अब यह अतिरिक्त से अपर कब हुआ, ये तो पता ही नहीं ! अपर तो अंग्रेजी का शब्द मालूम होता है, हिंदी से तो इसका लेना-देना लगता नहीं ! बहरहाल उत्तर प्रदेश में इसका नाम अतिरिक्त जिलाधिकारी होता था तो यह समझ में नहीं आता था (यूं समझ में अब भी नहीं आता है ) ! मन में सवाल उठता था कि जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी तो ठीक पर ये अतिरिक्त जिलाधिकारी क्या बला है ! एक पत्रकार अग्रज इसकी गजब मीमांसा करते थे. वो कहते थे- अतिरिक्त मतलब फालतू तो अतिरिक्त जिलाधिकारी मतलब फालतू जिलाधिकारी ! यानि जिलाधिकारी के अधीन वो अफसर जो कतई फालतू है !  अतिरिक्त से कुछ स्पेयर पार्ट जैसा बोध तो होता ही था !


लेकिन हुजूर कल जो बात आपने कही, उससे पत्रकार अग्रज की अतिरिक्त जिलाधिकारी की परिभाषा अर्थात फालतू जिलाधिकारी- उचित ही जान पड़ती है ! बात तो आपने कतई फालतू और वाहियात ही कही !  







 

 आपके पद का वर्तमान नामकरण- अपर जिलाधिकारी तो और ही विचित्र है, अपर जिलाधिकारी मतलब क्या ? जिलाधिकारी से अपर ? पर जब अपर जिलाधिकारी, जिलाधिकारी से लोअर है तो वह अपर जिलाधिकारी कैसे है ? दरअसल यह अंग्रेजी और हिंदी के मिश्रण वाला नामकरण आपकी नौकरशाह बिरादरी की बुद्धिमत्ता की ठसक में लिपटी हुई कूढ़मगजी का अनुपम उदाहरण है !


और हुजूर, जिस तरह से गड्डमड्ड आपका पदनाम है, पद के अहम और ठसक में, उसी तरह की गड्डमड्ड समझ का प्रदर्शन किया आपने !


जिस आम इंसान से आप पूछ रहे हैं तुम कौन होते हो ऑर्डर पूछने वाला, पद की ठसक में आप भूल गए हुजूर कि संवैधानिक रूप से आप उसी पब्लिक के सर्वेंट यानि जनता के नौकर हैं ! वह जनता है, तब आप हैं ! जनता का अस्तित्व आपकी वजह से नहीं है, बल्कि आपका अस्तित्व जनता की वजह से है !


और यह कह कर तो गजब ही कर डाला आपने कि “भारत के नागरिक की जगह खतम हो गयी है यहां !” कैसे जगह खत्म हो गयी, जनाब, भारत के नागरिक की ? माना कि पीसीएस हो कर आप पब्लिक सर्वेंट न हुए, खुदा की तोप हो गए पर बावजूद उसके, क्या आप सक्षम प्राधिकारी यानि कंपीटेंट अथॉरिटी हैं, जो किसी जगह पर से भारत के नागरिक का अधिकार खत्म कर सकें ? जो कानून आपको ऐसा प्राधिकार यानि अथॉरिटी देता हो, उस अधिकार, उस कानून का ब्यौरा आप सार्वजनिक कर सकें तो हम अज्ञानियों का भी ज्ञानवर्धन होगा कि कब नागरिक के रूप में, कोई अतिरिक्त किस्म का जिलाधिकारी बताया जा रहा व्यक्ति हमारे अधिकार खत्म कर सकता है ?  भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के किसी अनुच्छेद में तो ऐसा कोई प्रावधान देखने में नहीं आया, जिसमें देश के भीतर, जमीन के किसी टुकड़े पर कोई अपर या अतिरिक्त टाइप का जिलाधिकारी (जो वास्तव में जिलाधिकारी नहीं है और बात तो अतिरिक्त टाइप की कर रहा हो),  घोषित कर सके कि “भारत के नागरिक की जगह खत्म हो गयी है, यहां” !


यह जान लीजिये जनाब कि पद बड़ा नहीं है, देश बड़ा है, देश का नागरिक होना बड़ा है. आप अफसर हैं, इसलिए देश के नागरिक नहीं हैं बल्कि  आप देश के नागरिक हैं, तभी अफसर भी हैं ! जहां देश के नागरिक की जगह नहीं रह जाएगी तो वहाँ अफसर भी नहीं रह जाएंगी ! और यह तय जानिए कि जहां अफसर नहीं रहे, वहाँ यह सारी ठसक, सारी हेकड़ी भी धरी रह जाएगी ! देश रहेगा तो देश का नागरिक भी रहेगा, उसका नागरिक होना कोई अतिरिक्त बाबू टाइप अफसर अपने बड़बोलेपन और बड़बड़ाहट से नहीं छीन सकता ! नागरिक का अधिकार, आपकी अफ़सरी से पहले भी था, आपकी अफ़सरी के बाद भी रहेगा !


-इन्द्रेश मैखुरी  

 

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