यूं तो किसी भी कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए हरी झंडी
दिखाने का चलन है. वह रेलगाड़ी को रवाना करना हो या दौड़ शुरू करनी हो, किसी जत्थे को रवाना करना हो तो आम तौर पर हरी झंडी ही दिखाई जाती है.
लेकिन लगता है कि हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर(गढ़वाल) और वहां की कुलपति प्रो.अन्नपूर्णा नौटियाल ने कुछ नए झंडे
गाड़ने का बीड़ा उठाया है !
पूरे देश में चल रहे स्वच्छता सेवा पखवाड़े के तहत गढ़वाल
विश्वविद्यालय में हुए कार्यक्रम को झंडी दिखाने की बारी आई तो कुलपति महोदया ने हरी
झंडी नहीं दिखाई, उन्होंने झंडा ही दिखा दिया ! शायद उन्हें हरी झंडी दिखाना मामूली कार्य मालूम
हुआ होगा, जो रूटीन में लोग करते ही रहते हैं ! विज्ञापनों में
तो “आओ कुछ तूफानी करते हैं” का तुमुल नाद होता ही रहता है. लगता
है कि कुलपति महोदया- मैडम अन्नपूर्णा नौटियाल ने इस विज्ञापनी टैगलाइन को कुछ ज्यादा
ही गंभीरता से ले लिया और सचमुच तूफानी करने
की ठान ली !
तूफान पैदा करने के लिए उन्होंने देश के झंडे का उपयोग
कर डाला. घिसी-पिटी हरी झंडी की जगह उन्होंने स्वच्छता सेवा वाले कार्यक्रम को देश
का तिरंगा झंडा दिखा डाला ! यह बात किसी और
रंग के झंडे के बारे में कही जाती तो कहा जाता
कि झंडा दिखाया गया, लेकिन तिरंगे झंडे को जिस मुद्रा में
कुलपति महोदया दिखा रही हैं, वो झंडे को दिखा नहीं झुका रही हैं
!
हमारे यहाँ फिल्मी गीतों में तक बढ़-बढ़ कर, देश का झंडा न झुकने देने के लिए कुर्बानी देने की बात कही जाती है. लेकिन
यहाँ तो बिना किसी खतरे या हमले के ही देश का झंडा झुका दिया गया !
11 जनवरी 2022 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने पत्र जारी करके भारतीय
झंडा संहिता 2002 तथा राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971
के नियमों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया.
उक्त पत्र के साथ संलग्न – राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण
(संशोधन) अधिनियम 2003, जो कि 2005 का 51 वां अधिनियम है, की धारा 2 के स्पष्टीकरण 4 में झंडे के अपमान के संदर्भ में विस्तृत विवरण
है, जिसमें झंडे को झुकाना भी अपमान की श्रेणी में है.
हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.अन्नपूर्णा
नौटियाल को राष्ट्र ध्वज से संबंधित क़ानूनों की जानकारी नहीं है या कि राष्ट्र ध्वज
की उनकी निगाह में यही जगह है कि उसे खिलौने की तरह कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता
है ?
यूं तो नियम-कायदों के अनुपालन को लेकर गढ़वाल विश्वविद्यालय
में पहले से उच्च पदस्थों की मनमानी को तरजीह देने का चलन है. 2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय
बनने के बाद यह आदत और परवान चढ़ी ! वर्तमान कुलपति की ही बात करें तो उच्चतम न्यायालय
भी अप्रैल 2022 में अपने आदेश की अवहेलना करने के लिए न्यायालय में पेश होने का आदेश, उन्हें दे चुका है ! अपने आदेश का अनुपालन करवाने के लिए उच्चतम न्यायालय
को कहना पड़ा कि यदि आदेश का अनुपलन नहीं होगा तो न्यायालय को अवमानना की कार्यवाही
शुरू करनी पड़ेगी !
अदालती आदेशों की उपेक्षा से बढ़ कर लगता है, मामला देश के झंडे तक जा पहुंचा है ! यदि यही रफ्तार रही तो हो सकता है कि
विश्वविद्यालय के प्रशासनिक विद्वत जन, देश और संविधान से ऊपर
उठ जाएँ ! जिस विश्वविद्यालय की सर्वोच्च कार्यकारी अधिकारी,
राष्ट्र ध्वज की ऐसी अपमानजनक उपेक्षा कर रही हो, उस विश्वविद्यालय
से समाज कैसे नागरिकों की उम्मीद रख सकता है ?
-इन्द्रेश मैखुरी
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