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धन सिंह राणा जी को याद करते हुए

 







21 अक्टूबर की शाम को जोशीमठ से साथी अतुल सती का फोन आया और उन्होंने बताया कि धन सिंह राणा नहीं रहे !









धन सिंह राणा एक बेहद ज़िंदादिल, बेहद जीवंत इंसान, अपनी माटी, अपनी धरती के लिए, उस धरती के लोगों की बेहतरी के लिए समर्पित इंसान ! और अब ऐसा इंसान अपनी धरती, अपने लोगों को, उनके संघर्षों को छोड़, दुनिया से रुखसत हो गया है.


उस नीती घाटी और जोशीमठ के इलाके में “चिपको” के वास्तविक ज़मीनी संगठक, सिद्धांतकार और लड़ाकू योद्धा कॉमरेड गोविंद सिंह रावत के साथ धन सिंह राणा के संघर्षों का सिलसिला “चिपको” के समय से शुरू होता है. कॉमरेड गोविंद सिंह रावत के साथ वे नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में चलाये गए “छीनो-झपटो” आंदोलन के प्रमुख साथी के तौर पर होते हैं. चिपको और कॉमरेड गोविंद सिंह रावत के साथ शुरू हुई यात्रा उन्हें जल, जंगल, जमीन के अधिकार और सरोकारों के साथ ऐसा जोड़ती है कि वे जीवन पर्यंत इस प्रतिबद्धता के साथ खड़े रहते हैं. कॉमरेड गोविंद सिंह रावत के न रहने के बाद भी जोशीमठ के इलाके में जल, जंगल, जमीन के हर संघर्ष में, खास तौर पर विनाशकारी जलविद्युत परियोजनाओं के खिलाफ संघर्ष में कॉमरेड धन सिंह राणा मजबूती से खड़े रहते हैं.


कॉमरेड गोविंद सिंह रावत के साथ रहते हुए ही वे कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुड़ते हैं और आजीवन बेहद संजीदगी से कम्युनिस्ट विचार को अपनी खास शैली में अपने लोगों के बीच ले जाते हैं. वे अक्सर ही कहते थे- ये लाल झंडा तो ढाल है, इसके रहते कोई माफिया, कोई पूंजीपति निचले दर्जे की बात नहीं करता, आपकी बोली लगाने की कोशिश नहीं करता.


यह तो ठीक-ठीक याद नहीं कि उनसे पहली मुलाक़ात कब हुई थी, लेकिन यह खूब याद है कि 2007 में जब अतुल भाई विधानसभा का चुनाव लड़े थे तो कॉमरेड धन सिंह राणा उनके साथ निरंतर पूरे अभियान के साथ रहे थे. अतुल भाई तो जब श्रीनगर से जोशीमठ लौटे और इस इलाके को उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र बनाया तो एक तरह से इलाके में धन सिंह राणा ही उनके पहले मजबूत, वैचारिक साथी थे.









उस चुनाव अभियान में ही हमने जाना कि धन सिंह राणा ज़मीनी विवेक, और वैश्विक कम्युनिस्ट दृष्टि के अद्भुत मिश्रण हैं. थिंक ग्लोबली, एक्ट लोकली- की ज़मीनी मिसाल. प्रत्युत्पन्नमति, हाजिरजवाबी उनकी लाजवाब कर देने वाली थी. ज़मीनी किस्सों और उसके व्यापक संदर्भों की उनके पास भरमार थी. उनके इसी गुण को देखते हुए कॉमरेड कैलाश पांडेय और अतुल सती ने कहा कि धन सिंह राणा, हमारे अबु तालिब हैं. अबु तालिब, रूस के पहाड़ी इलाके दागिस्तान के कवि थे, बेहद हाजिर जवाब और किस्सागो. रसूल हमजातोव की विख्यात पुस्तक- “मेरा दागिस्तान” के अहम किरदार हैं- अबु तालिब. और सचमुच “मेरा दागिस्तान” के उस किरदार को पढ़ें और धन सिंह राणा को देखें तो लगता है कि दुनिया के दो छोरों पर जमीनी विवेक, प्रत्युत्पन्नमति और हाजिरजवाबी के एक से किरदार हैं.  


2007 में ही पहली बार उनका लिखा वो चर्चित गीत- “य लंबी लड़ै च” उनके सुरीले, बुलंद कंठ से सुना. 











बाद में उस गीत को हमारे साथी कॉमरेड मदन मोहन चमोली ने भी अपना सर्वाधिक गाये जाना वाला गीत बना दिया.









यह भी रोचक है कि अपने इस गीत का इस्तेमाल वे, अपनी ही धारा के कुछ साथियों के ठेकेदार होने पर, उनके विरुद्ध तंज़ करने के लिए भी करते थे. ऐसों पर तंज़ करते हुए, अपने ही गीत की वे पैरोडी पेश करते- “एक- सत्रह को मसाला बणावा रे लोगो, यू लंबो नहर च !” 

     

 बहरहाल धन सिंह राणा द्वारा रचित यह गीत-“य लंबी लड़ै च” -  उत्तराखंड की मुकम्मल तस्वीर पेश करता है कि कैसे राज्य बनने के बाद विकास के नाम पर विनाश की नीतियां चली,पलायन,बेरोजगारी बढ़ी,जंगल,जमीन,पानी सब बिकाऊ हो गया और इनपर निर्भर उत्तराखंडी मनुष्य संकटग्रस्त हो गया.विकास के नाम पर फाइलों के भरते पेट और हर चीज का प्रोजेक्टीकरण करते एन.जी.ओ. का चेहरा भी यह गीत दिखाता है.जंगलों की आग,गाँवों में बाघ की तस्वीर गीत में है तो मनुष्य हुआ छोटा,बड़ा हुआ बाघ जैसा तंज भी है,जो हाशिये पर पड़े मनुष्य की कीमत पर बाघ बचाने की पर्यावरणीय सनक का उपहास है.राज्य बनने के बाद के वर्षों की उपलब्धि समझनी हो तो इस गीत की एक पंक्ति से समझी जा सकती है-दूर के बैरी नजदीक आ गए.सत्ता के लखनऊ से देहरादून पहुँचने की इससे सटीक व्याख्या और क्या हो सकती है भला ! लेकिन यह निराशा का गीत नहीं है,छाती पीटने का गीत नहीं है.हर अंतरे के अंत में-रे लोगों लम्बी लड़ै च (रे लोगो लड़ाई लम्बी है)-का आह्वान है.यानि लड़ाई तो लम्बी है,वो राज्य बनने के बाद पूरी नहीं हुई है.जनता के सपनों के उत्तराखंड की लड़ाई लम्बी है और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के खात्मे की लड़ाई से भी इसका सम्बन्ध गीतकार देखता है,इसलिए लाल झंडा उठाने का आह्वान भी करता है.


नीचे गीत और उसका हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है-

 

“नानातीना अर बुड्या बीमार, नर नारी अर ज्वान होवा तैयार

राज को आज कमान संभाला, रे लोगों या लंबी लड़ै

राज्य खातिर लड़ी लड़ाई, इज्जत चुकाई अर जान गंवाई

आज यो अपणो से ही ठगीग्या, रे लोगो य लंबी लडै़ च

आज अपणो की मार पड़ी छ, जीती तैं भी आज हार हुई छ

दूर का बैरी नजदीक ऐग्या,रे लोगो या लंबी लडै़ च

ऐंच मंगल का सपना दिखौणा, तौला हमारी धरती बिकौणा 

विकास का नौ पर गौं डुबौणा, रे लोगो य लंबी लडै़ च

विज्ञान का नौं से पहाड़ हिलौणा विकास का नौं से गाड़ सुखौणा

धारा-मगेरा-पंदेरा बिकिग्यां, रै लोगों या लंबी लड़ै च

भाबर बुग्याल योन हतेली, गाजी बाखरा सब योन ही खैली

रोजगारू का बाटा टुटिग्या, रे लोगो य लंबी लड़े च

देश रक्षा की बात कना छन, बौडर सारा खाली होणा छन

पलायन हेवगी डारों की डार, रे लोगों या लंबी लड़ै च

खंबों न खैली नाजो की सार, आसमान मा बिछयाणा तार

गौंका विनास शहरों विकास रे, लोगों या लंबी लड़ै च

 

बिजली का नौसे काटिग्या डाला, आज हिमालय पौडि़ग्या काला

सुखग्यिा आज पंच प्रयाग रे, लोगों या लंबी लड़ै च

 

न जनतंत्र रे त न प्रजातंत्र, पहाड़ मा ऐगे मसीन दैंत

योते ही सारू हाईवे बण्यूछ,रे लोगों या लंबी लड़ै च.

जौन सदा जंगल ही बिकाई, जनता न तिलाड़ी और चिपको उठाई

इ बाघ ही आज बकर्वाला बण्या छा,रे लोगों या लंबी लड़ै च

दिन-रात होण्या यख कार्यशाला, चोर बण्या छ यख मालोमाल

विकास का नौसे कागज भरेण्या, रे लोगों या लंबी लड़ै च

सरकारी-गैरसरकारी संस्था ऐग्या खौला-मेला भी प्रोजेक्ट होग्या

योको ही छ आज सब लूट खसोट, रे लोगों या लंबी लड़ै च

गौं का लोगों वापस आवा, जन्मभूमि को लाज बचावा

निंत औण वाली पीढ़ी भौत देली गाली

रे लौगो लोगों या लंबी लड़ै च

जल-जमीं-जंगल पर करा अधिकार,अग्ने बढ़ावा वाम विचार 

हाथ मा लाल झंडा उठावा, रे लोगों या लंबी लड़ै च.....”

 

हिंदी अनुवाद :

“बच्चे हों या बूढ़े बीमार,नर-नारी,जवान हो जाओ तैयार 

राज की आज कमान संभालो,रे लोगों ये लम्बी लड़ाई है 

राज्य की खातिर लड़ी लड़ाई,इज्जत चुकाई और जान गंवाई 

आज तो अपनों से ही ठगे गए,रे लोगों ये लम्बी लड़ाई है 

आज अपनों की मार-पड़ी है,जीत कर भी हार हुई है 

दूर के बैरी नजदीक आ गए,रे लोगों ये लम्बी लड़ाई है 

ऊपर मंगल के सपने दिखा रहे हैं ,नीचे हमारी जमीन की बोली लगा रहे हैं 

विकास के नाम पर गाँव डूबा रहे हैं,रे लोगों ये लम्बी लड़ाई है 

विज्ञान के नाम पर पहाड़ों को हिला रहे हैं,विकास के नाम पर जल स्रोतों को सुखा रहे हैं -

नदी,झरने,सोते,सब बिक गए,रे लोगो ये लम्बी लडाई है 

भाबर,बुग्याल सब इन्होने हतिया लिए,पालतू पशु सब इन्होने हजम कर लिए 

रोजगार की सब राहें टूट गयी हैं,रे लोगो ये लम्बी लड़ाई है 

देश रक्षा की बात कर रहे हैं,सीमान्त सारे खाली हो रहे हैं,

पलायन हो गया ढेरों-ढेर,रे लोगो ये लम्बी लडाई है  

खम्बे खा गए अनाजों के खेत,आसमान में बिछ गए तार 

गाँवों का विनाश,शहरों का विकास,रे लोगो ये लम्बी लडाई है

बिजली के नाम से सब पेड़ों को कट डाला,सारा हिमालय पड गया काला,

सूख गए सारे प्रयाग,रे लोगो ये लम्बी लड़ाई है  

न जनतंत्र,न प्रजातंत्र यह तो है दैत्याकार मशीन तंत्र

इनके लिए ही सारा हाई वे बना है,रे लोगों ये लम्बी लडाई है 

जिन्होंने सदा जंगलों की बोली ही लगाई,जनता ने इनके विरुद्ध तिलाड़ी और चिपको की आवाज उठायी 

ये बाघ ही आज बकरियों के रखवाले बने हैं,रे लोगो ये लम्बी लड़ाई है

दिन रात हो रहे कार्यशाला,चोर बने यहाँ मालामाल 

विकास के नाम से कागज भरे जा रहे,रे लोगो ये लम्बी लडाई है 

सरकारी,गैर सरकारी संस्था वाले पहुँच गए,मेले ठेले भी प्रोजेक्ट हो गए

इनकी ही सारी लूट-खसोट,रे लोगों ये लम्बी लड़ाई है

गांवों के लोगो वापस आओ,जन्मभूमि की लाज बचाओ,

नहीं तो आने वाली पीढ़ी बहुत कोसेगी,रे लोगों ये लम्बी लड़ाई है

जल-जमीं-जंगल पर करो अधिकार,आगे बढाओ वाम विचार 

हाथ में लाल झंडा उठाओ,रे लोगो ये लम्बी लडाई है.”

 

 

वह रौबादार मूछों के पीछे वैश्विक दृष्टि वाले पहाड़ी आदमी की बिंदास हंसी हमेशा के लिए खामोश हो गयी. लेकिन हम आपका आह्वान याद रखेंगे, साथी धन सिंह राणा कि “या लंबी लड़ै च”, इस लंबी लड़ाई को लड़ेंगे और हर लड़ाई में आपके इस गीत के जरिये आप हमारे साथ बने रहेंगे.

अलविदा कॉमरेड धन सिंह राणा, लाल सलाम !

-इन्द्रेश मैखुरी

 

 

 

 

 

 

 

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