उत्तराखंड पुलिस काम तो करती है पर उससे ज्यादा उसे
सोशल
मीडिया पर दिखने का शौक है. सर्वोच्च पदस्थों से लेकर थाने- कोतवाली तक काम से ज्यादा
सोशल मीडिया पर छाए रहने का शौक, इस कदर व्याप्त है कि उसके लिए नियम-
कायदे भी ताक पर रखने की हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं.
चमोली पुलिस को ही देख लीजिये. उन्होंने कल यानि 16 अक्टूबर
2023 को एक अभियुक्त की गिरफ्तारी की, जिस पर एक नाबलिग बच्ची
से दुराचार का आरोप है. इस गिरफ्तारी से चमोली पुलिस इतना जोश में आ गयी कि लगता है
होश—ओ-हवास ही खो बैठी. गिरफ्तारी का ढिंढोरा पीटने के लिए तत्काल फेसबुक पोस्ट डाला
गया. फेसबुक पोस्ट डालने में लगता है, उपलब्धि का जोश इस कदर
हिलोरें मार रहा था कि ऐसी पोस्ट में बरती जाने वाली कानूनी सीमाएं, उस जोश में बह गयी.
अव्वल तो नाबालिग को “नाबालिक” लिखा गया. यह पहले भी चमोली पुलिस के फेसबुक पोस्ट पर होता रहा है. अतीत में
चमोली पुलिस के एक अहोदेदार मित्र को मैंने
बताया भी कि बंधु सही शब्द- नाबालिग है, नाबालिक नहीं ! यह बालिग
का विलोम है, बालक या बालिका का पर्यायवाची नहीं ! पर नतीजा अभी
भी ढाक के तीन पात ही है !
यह इमले की गलती
फिर भी क्षम्य है. लेकिन कल डाली गयी पोस्ट में नाबालिग बच्ची का जिस तरह का ब्यौरा
सार्वजनिक किया गया है, वह क्षम्य तो है ही नहीं, कानूनन अपराध भी है.
चमोली पुलिस के फेसबुक पेज पर कल डाली गयी पोस्ट में न
केवल नाबालिग बच्ची के भाई का नाम बल्कि भाई के पिता यानि बच्ची के पिता का नाम और
गाँव का नाम भी लिखा गया है. इस तरह देखें तो दुराचार की पीड़ित नाबालिग बच्ची की सारी
पहचान ही सार्वजनिक कर दी गयी है.
दुराचार पीड़ित
महिला या बच्ची की पहचान सार्वजनिक करना कानूनन अपराध है.
बलात्कार की शिकार लड़की या
महिला का नाम प्रचारित-प्रकाशित करने और उसके नाम को सार्वजनिक करने से संबंधित
कोई अन्य मामला आईपीसी की धारा 228 ए के तहत अपराध है. आईपीसी की धारा 376, 376
ए, 376
बी, 376
सी, 376
डी, 376
जी के
तहत केस की पीडिता का नाम प्रिंट या पब्लिश करने पर दो साल तक की कैद और जुर्माना
हो सकता है. कानून के तहत बलात्कार पीडि़ता के निवास, परिजनों, दोस्तों, विश्वविद्यालय या उससे जुड़े
अन्य विवरण को भी उजागर नहीं किया जा सकता.
जिस प्रकरण में चमोली पुलिस ने लड़की का ब्यौरा सार्वजनिक कर दिया है, उस प्रकरण में चमोली पुलिस का खुद ही कहना है कि लड़की, नाबालिग है. नाबालिगों के संदर्भ में पॉक्सो अधिनियम
की धारा 23(2) में प्रावधान है कि यौन अपराध के बाल पीड़ित का नाम, पता, फोटोग्राफ, परिवार का विवरण,स्कूल, पड़ौस या कोई अन्य विवरण जो उसकी पहचान सार्वजनिक
कर दे, उसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. इसका उल्लंघन करना
दंडनीय अपराध है, जिसके लिए छह माह से लेकर एक साल तक की सजा
हो सकती है और जुर्माना भी हो सकता है.
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 74 में भी, किसी अपराध के पीड़ित बच्चे या यहाँ तक कि अपराध करने के आरोपी बच्चे और अपराध
के गवाह बच्चे का नाम, नाम, पता, स्कूल या अन्य विवरण सार्वजनिक करने पर प्रतिबंध है.
लेकिन चमोली पुलिस ने फेसबुक पर बच्ची के भाई और पिता
तथा गाँव का नाम लिख कर उसकी सारी पहचान सार्वजनिक करने का अपराध कर दिया है.
चमोली जिले के पुलिस क्या यह समझती है कि उसका काम कानून का डंडा चलाने का है, कोई कानून उस पर लागू नहीं होता और स्वयं कानून का अनुपालन करने के लिए वह
बाध्य नहीं है ?
यह बेहद अफसोसजनक है कि जो पुलिस के कानून का अनुपालन
सुनिश्चित करवाने के लिए उत्तरदायी है, वह सिर्फ सस्ती लोकप्रियता
हासिल करने के लिए इस तरह कानून की धज्जियां उड़ा कर, एक दुराचार
पीड़ित नाबालिग और उसके परिवार के लिए समाज में शर्मिंदगी की स्थिति पैदा कर रही है
!
कोई चमोली पुलिस को भी कानून का पाठ पढ़ाओ भाई !
-इन्द्रेश मैखुरी
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