सुनते हैं कि देहरादून में एक दरबार लगा. नाम था बागेश्वर
दरबार ! बागेश्वर तो उत्तराखंड में एक जिले का नाम है, जिला दरबार कैसे
लगा सकता है भला !
सुनते तो
यह भी रहे कि दरबार राजे-महाराजे लगाया करते थे. राजे-महाराजे तो लोगों ने आज़ादी के
समय अंग्रेजों के साथ ही निपटा दिये थे. तो अब ये दरबार लगाने वाले कौन हैं ? सुनते हैं कि ये
धर्म प्रचारक हैं, कुछ लोग
इन्हें संत भी बता रहे हैं. पर भला ये संत लोग कब से दरबार सजाने लगे ? संतों के बारे
में तो पढ़ा-सुना जाता रहा है कि “संतन को कहां सीकरी सो काम !”
लेकिन इस दौर में लगता है
कि संत कहे जाने वालों को सीकरी यानि सत्ता के गद्दीस्थल से काम ही नहीं मोह, माया, लोभ सब है और उन्हें यह सब चाहिए भी ! इसलिए दुनिया
के नश्वर, क्षणभंगुर, नाशवान होने का पाठ
पढ़ाने वालों को एमपी, एमएलए होना है, मंत्री-
मुख्यमंत्री बनना ! जगत को मिथ्या बताने वालों को दुनियादारी से सन्यास लेकर भी इस
मिथ्या जगत के सभी सुख अपने कदमों में चाहिए ! सुख-सुविधा और भोग-विलास के तमाम साधनों
की ग्लैमराइज़ मौजूदगी न हो और उसका विज्ञापनी प्रचार न हो तो इनका यह सारा माया से
मुक्ति के उपदेश के लिए सजा हुआ, मायालोक ताश के पत्तों की तरह
धराशायी हो जाएगा.
ये जिन संत या सन्यासी कहे जाने वाले हजरत का दरबार सजा
था, उनके बारे में याद आया कि बीते दिनों महिलाओं को प्लॉट बताने वाला बेहद भद्दा
बयान वे दे चुके हैं. एक जमाने में पढ़ते थे कि
“साधू ऐसा चाहिए, जैसे सूप सुभाय
सार-सार को गही रहियो, थोथा देय उड़ाय”
आजकल साधू कहलाने वालों द्वारा महिलाओं को प्लॉट कहने
या दूसरे धर्म के प्रति जहर उगलते देख कर ऐसा लगता है कि तमाम ऐश-ओ-आराम के “स्वादुओं”
ने सारा थोथा इकट्ठा करके लोगों के मन-मस्तिष्क पर उड़ाने का बीड़ा अपने सिर लिया हुआ
है !
जिन्होंने दरबार
लगाया, उन संत को न केवल “सीकरी” से काम है बल्कि वे स्वयं को ही “सीकरी” यानि सरकार भी घोषित किए हुए हैं ! इसलिए उनके भक्तजन उन्हें बागेश्वर सरकार
कह कर भी गदगद होते रहते हैं. अब यह बड़ा भ्रम है, इन्हें सन्यासी
भी होना है, लेकिन सुख-सुविधा, फौज-फाटा, उड़नखटोला(हेलीकाप्टर, प्राइवेट जेट) सब चाहिए ! इन्हें
सन्यासी भी होना है पर राजा-महाराजाओं की तरह दरबार भी लगाना है और अपनी ताकत के प्रदर्शन
के लिए सरकार भी कहलाना है ! यूं तो दो नावों की सवारी ही बेहद घातक बताई जाती है, ये तो एक ही साथ कई नावों पर सवार हैं ! लेकिन उस दिन तक कोई खतरा नहीं जब
तक असली वाली सरकार का सिर पर हाथ है !
इनके स्वयं को सरकार कहने से याद आया कि उत्तराखंड के
सरकार के मुखिया भी तो वहां मंच पर मौजूद थे. संतों को सीकरी से जो चाहिए हो, पर सीकरी को इन संत कहे जाने वालों से क्या चाहिए ?
यह समझना हो तो हिमाचल प्रदेश के चुनावों के वक्त हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा पैरोल
पर रिहा किए गए हत्या-बलात्कार के लिए सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम को याद कीजिये, मध्य प्रदेश के चुनावों के वक्त बलात्कार के लिए जेल की सलाखों के पीछे मौजूद
आसाराम की तस्वीर पर फूल चढ़ाते कैलाश विजयवर्गीय को याद कीजिये.
स्वयं को सरकार कहने वाले जिन बाबा के स्वागत में उत्तराखंड
की सरकार के मुखिया पहुंचे थे, वो बाबा पर्ची निकाल कर लोगों के
कष्ट हरने का दावा करते हैं. पर्ची की भली चलायी, यदि दिल्ली
वाले पुष्कर सिंह धामी के नाम की पर्ची न निकालते तो विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद
धामी जी, मुख्यमंत्री कैसे होते ? इस राज्य
की सत्ता में जो बैठते हैं, वे अपनी काबिलियत से तो गद्दी पर
बैठते नहीं. दिल्ली वाले उनकी पर्ची निकालते हैं और उन्हें उत्तराखंड में गद्दीनशीन
कर देते हैं. दो-ढाई साल में एक की पर्ची फाड़ते हैं, उसे कुर्सी
से उतार देते हैं और नए की पर्ची निकाल कर, उसे गद्दी पर बैठा
देते हैं ! जिनको यह राज्य, स्वयं पर्ची सिस्टम से मिला है, उनका पर्ची वाले बाबा की सेवा में खड़ा रहना लाज़मी है. पर्ची वाली की पर्ची
भी तभी तक है, जब तक दिल्ली वालों का पर्चा उसके साथ है और इनकी
गद्दी भी उसी दिन तक है, जब तक दिल्ली वाले इनकी पर्ची फाड़ कर
नए की पर्ची नहीं निकाल देते !
पर्ची वाले बाबा को लोगों ने फेसबुक पर खूब चुनौती दी. लोगों ने लिखा कि यदि बाबा की पर्ची में दम है तो वो, अंकिता भंडारी हत्याकांड का कारण बताए जा रहे वीआईपी के नाम की पर्ची निकाल कर दिखायें. हालांकि यह बात तंज़ के लिए ही कही गयी, लेकिन यह तंज़ न केवल चमत्कारी पर्ची की शक्ति से लैस होने का दावा करने वाले बाबा पर है बल्कि उत्तराखंड पुलिस पर भी है. यहीं असल में सारा पेंच है. जिन कारणों से पुलिस, वीआईपी का नाम नहीं खोल पायी लगभग उन्हीं कारणों से, भारी चमत्कारी होने का दावा करने वाले के लिए भी वीआईपी की पर्ची निकालना असंभव है ! पुलिस नाम सार्वजनिक करने की कोशिश करती दो-चार की नौकरी पर बन आती, लेकिन बाबा का तो सारा चमत्कार, दरबार, सरकार, ही पर्ची के आकार का कर दिया जाएगा !
प्राइवेट जेट से बाबा लोग यात्रा करेंगे, माइक्रोफोन से बोलेंगे, सैटेलाइट टेलिविजन और इंटरनेट
से घर-घर पहुंचेंगे यानि विज्ञान के आधुनिकतम आविष्कारों का उपयोग-उपभोग करेंगे और
फिर कहेंगे-विज्ञान तो धर्म के सामने तुच्छ है ! जरा धर्म के चमत्कार के दम पर उड़ कर
यहां से वहां जा कर दिखाओ और अपनी आवाज़ को धार्मिक चमत्कार से घर-घर पहुंच के दिखाओ
तो, विज्ञान के आविष्कारों का उपयोग-उपभोग करके, उसको गरियाने वाले सो क्यूट, बाबा लोग्स, !
-इन्द्रेश मैखुरी
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अंधविश्वास को पोसती सरकारों से और क्या उम्मीद लगाए सकते हैं
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