अभी कुछ दिनों में 09 नवंबर आने वाला है, जो उत्तराखंड राज्य
का स्थापना दिवस है. इस 09 नवंबर को उत्तराखंड बने 23 साल हो जाएंगे. जब अलग राज्य
बना तो पहली कामचलाऊ सरकार भाजपा की ही थी. उस कामचलाऊ सरकार से ही
उत्तराखंड को विभिन्न तरह के नाम दिये गए जैसे- ऊर्जा प्रदेश, पर्यटन प्रदेश, हर्बल प्रदेश- और भी जाने क्या-क्या.
लेकिन जो नाम नहीं दिया गया और जो यह प्रदेश बना वो है-
घोटाला प्रदेश. रोजगार में घोटाला, नियुक्तियों में घोटाला, कोई ऐसा महकमा नहीं जहां घोटाला न हो. भाजपाई राज की तो खासियत है कि वे जुमला
उछालते हैं कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनकी ज़ीरो टॉलरेंस की नीति है और उनकी नाक के
नीचे घोटाला होता रहता है.
हाल में उद्यान विभाग के घोटाले के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सीबीआई जांच के आदेश दिये हैं.
दीपक करगेती और गोपाल दत्त उप्रेती की विभिन्न याचिकाओं पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय
के हाल ही में सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति
राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने उद्यान विभाग के घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश दिये. उक्त
आदेश के क्रम में अपने 45 पृष्ठों के फैसले में उच्च न्यायालय ने जो लिखा, वह इस बात की पुष्टि करता है कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही
करने के प्रति उत्तराखंड में भाजपा की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार बेहद
उदासीन है.
उच्च न्यायालय के फैसले को पढ़ें तो उससे जो जाहिर होता
है, वह भ्रष्टाचार की एक पूरी फिल्म है. उस फिल्म की शुरुआत यहाँ से होती है कि
2021 में उत्तराखंड सरकार द्वारा उद्यान और खाद्य प्रसंस्करण विभाग के निदेशक बनाए
गए डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा. डॉ.
हरमिंदर सिंह बवेजा उत्तराखंड के अफसर नहीं हैं बल्कि वे उद्यान विभाग का निदेशक
बनाने के लिए पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से एक वर्ष की प्रतिनियुक्ति पर आते हैं या
लाये जाते हैं.
डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर
आरोप सामने आते हैं, लेकिन उत्तराखंड सरकार उनकी प्रतिनियुक्ति
की अवधि 2024 तक बढ़ा देती है. जिस हिमाचल प्रदेश से डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा आए या लाये
गए हैं, वहाँ उद्यान विभाग के निदेशक पद पर रहते हुए उनके खिलाफ
वित्तीय अनियमितताओं के मामलों की जांच चल रही होती है. हिमाचल प्रदेश में उनको चार्जशीट
दी जा चुकी होती है. उच्च न्यायालय के फैसले में इस बात का उल्लेख है कि जब 13 नवंबर
2021 को डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा की प्रतिनियुक्ति अवधि को 01 फरवरी 2022 से 31 जनवरी
2024 तक बढ़ाया जा रहा था तो उत्तराखंड सरकार को यह पता तक नहीं था कि डॉ. हरमिंदर सिंह
बवेजा के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में कोई जांच चल रही है. इस तथ्य से आप समझ सकते हैं
कि यह राज्य कैसे चलाया जा रहा है.
उच्च न्यायालय के फैसले से ही सवाल पैदा होता है कि दूसरे
राज्य में भ्रष्टाचार के आरोपी अफसर को उत्तराखंड क्यूँ लाया गया, उसमें किसकी भूमिका थी और किसके हित थे ? यह भी सवाल
है कि उत्तराखंड में जब डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरू हो
गए थे तो उसके बावजूद उनकी प्रतिनियुक्ति अवधि दो साल के लिए बढ़ाने के पीछे किसका हाथ
था ?
उच्च न्यायालय के फैसले में ही इस बात का उल्लेख है कि
उद्यान विभाग के निदेशक पद पर बैठते ही डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा की मनमानियों का सिलसिला
शुरू हो गया था. डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा ने मनमाने तरीके से फलों के पौधों की कीमतें
बढ़ानी शुरू की. उन्होंने ऐसी नर्सरियों से पौध लेने के आदेश दिये और भुगतान किए, जो जमीन पर थे ही नहीं. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में याचिककर्ताओं के उन
आरोपों का उल्लेख किया है कि उद्यान विभाग के निदेशक पद पर बैठते ही डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा
ने कीवी के पौधे की कीमत 35 रु. से बढ़ा कर 75 रु. कर दी और कलमी कीवी की कीमत 75
रु. से 175 रु. कर दी.
डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा ने सभी मुख्य उद्यान अधिकारियों
और जिला उद्यान अधिकारियों को निर्देश दिया कि सेब, आड़ू, अखरोट आदि के पौधे 2021-2022 में जम्मू-कश्मीर के कुलगाम की जावेद नर्सरी
से खरीदने हैं.
यह भी आरोप है
कि निदेशक की हैसियत से डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा ने जम्मू कश्मीर की एक अन्य नर्सरी
से घटिया पौधों की खरीद करवायी.
डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा ने
2022-23 में सर्दियों के फलों की पौध बड़कोट, उत्तरकाशी की अनिका
नर्सरी से खरीदने का आदेश दिया. उच्च न्यायालय के फैसले को ही पढ़ लें तो ऐसा लगता है
कि इस अनिका नर्सरी पर डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा अत्याधिक मेहरबान थे. उच्च न्यायालय
के फैसले में उल्लेख है कि इस अनिका नर्सरी को बिना तिथि का लाइसेंस जारी कर दिया गया.
यह भी उच्च न्यायालय के फैसले में उल्लेख है कि अनिका नर्सरी का जो पता दिया गया है, उस पते पर कोई नर्सरी नहीं है. अदालत में नर्सरी के वकील की ओर से कहा गया
कि उनके पते में ओढ़गांव का उल्लेख गलती से हो गया है. लेकिन यह भी अदालत के फैसले में
दर्ज है कि लोधन गांव में जहां अनिका ट्रेडर्स द्वारा नर्सरी होने का दावा किया गया, वहां पर भी कोई नर्सरी नहीं थी. फिर यह दावा किया गया कि अनिका ट्रेडर्स का
जम्मू कश्मीर के कुलगाम की ग्रीन नर्सरी से एक साल का अनुबंध है. लेकिन उच्च न्यायालय
के फैसले में याचिकाकर्ता के वकील की इस बात
का उल्लेख है कि नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड की वैबसाइट पर यह तथ्य अंकित है कि जम्मू-कश्मीर के कुलगाम की ग्रीन नर्सरी की सेब के
पौधों की उत्पादन क्षमता मात्र 41000 पौध है, जबकि अनिक ट्रेडर्स
को एक लाख पौधों का ऑर्डर दे दिया गया था !
इस अनिका नर्सरी पर मेहरबानी का यह आलम था कि 01 मार्च
2023 को उच्च न्यायालय ने आदेश किया कि अग्रिम आदेशों तक उक्त नर्सरी को कोई भुगतान
न किया जाये और उक्त आदेश के अगले ही दिन यानि 02 और 03 मार्च 2023 को उक्त नर्सरी
को 1,76,98,037 रुपये का भुगतान कर दिया गया.
अनिका नर्सरी समेत कई अन्य
नर्सरियों के ऐसे भ्रष्टाचार के किस्से उच्च न्यायालय के फैसले में पढ़े जा सकते हैं.
ऐसा ही एक मामला रानीखेत से
भाजपा के विधायक डॉ.प्रमोद नैनवाल और उनके भाई सतीश नैनवाल का भी उच्च न्यायालय के
फैसले में उल्लिखित है. किस्सा यूं है कि नैनीताल जिले के बेतालघाट में हॉर्टिकल्चर
मोबाइल टीम ने 2022-23 में सेब के 3100 क्लोनल रूट स्टॉक बांटें जिनमें से 2402 एक
ही व्यक्ति यानि भाजपा विधायक डॉ.प्रमोद नैनवाल के भाई सतीश नैनवाल को दे दिये गए.
यह बात माननीय उच्च न्यायालय में भीमताल के कार्यकारी उद्यान अधिकारी राजेंद्र कुमार
सिंह द्वारा दाखिल प्रति शपथ पत्र के पृष्ठ संख्या 325 पर दर्ज है.
इस तरह देखें तो उद्यान निदेशालय
में डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा के निदेशक रहने के दौरान भ्रष्टाचार की यह अंतहीन दास्तान थी, जिसके खुलासे की जरूरत माननीय उच्च न्यायालय ने भी महसूस
की. यह भी गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने सीधे मामले को सीबीआई को नहीं सौंपा बल्कि
पहले न्यायालय ने एसबीआई को यह परीक्षण करने
को कहा कि इस प्रकरण में प्राथमिक जांच (प्रिलिमिनरी एनक्वायरी) लायक मामला बनता है
कि नहीं.
जब उच्च न्यायालय ने मामला
सीबीआई को सौंपने का फैसला किया तो उत्तराखंड सरकार की तरफ से महाधिवक्ता ने वही घिसा-पिटा
तर्क दोहराया कि इससे राज्य की पुलिस के मनोबल पर विपरीत असर पड़ेगा. भ्रष्टाचार का
यह तंत्रजाल पूरे राज्य में फैला हुआ है, इससे किसी के मनोबल पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जांच
बाहरी एजेंसी से करवाने में पुलिस के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, यह अजब किस्म का तर्क है धामी जी के सबसे बड़े सरकारी वकील का !
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले
में उचित ही लिखा कि उत्तराखंड सरकार चाहती तो इस मामले में अदालत का फैसला आने से
पहले कानूनी कार्यवाही कर, इसकी आपराधिकता
की जांच करा सकती थी.
माननीय उच्च न्यायालय ने लिखा
कि डॉ.हरमिंदर सिंह बवेजा की अगुवाई में उद्यान विभाग
द्वारा अनिका ट्रेडर्स, बड़कोट एग्रो
फार्म्स, विशाल नर्सरी आदि से किए गए लेनदेन में गंभीर वित्तीय
अनियमितताएं होने का अंदेशा है. उच्च न्यायालय ने लिखा कि डॉ.हरमिंदर
सिंह बवेजा, अन्य अधिकारियों तथा राज्य के बाहर और राज्य की भीतर की निजी पार्टियों द्वारा
किए जा रहे घोटाले को उजागर करने का राज्य सरकार द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया.
न्यायालय ने लिखा कि राज्य
सरकार को कई प्रतिवेदन दिये गए, न्यायालय
में याचिका के बाद याचिका दाखिल की गयी पर राज्य सरकार ने खामोश रहना चुना. जब न्यायालय
ने सीबीआई की प्राथमिक जांच के संदर्भ में राय मांग ली, तब जाकर
राज्य सरकार ने एसआईटी बनाने का फैसला किया.
उच्च न्यायालय ने यह भी लिखा कि आइस मामले में एसआईटी
की रिपोर्ट देखी और पाया कि एसआईटी ने बेहद उदासीनता के साथ कार्यवाही की और घोटाले
को खोलने के लिए एसआईटीकी तरफ से कोई सक्रिय प्रयास नहीं किए गए.
डॉ.हरमिंदर सिंह बवेजा पर
टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने लिखा कि ऐसा प्रतीत होता है कि डॉ बवेजा प्रभावशाली और
अच्छे संपर्कों वाले हैं, इसीलिए उनके
विरुद्ध निलंबन और जांच के आदेश के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई.
न्यायालय ने अपने फैसले में लिखा है कि इस अंदेशे से इंकार नहीं किया जा सकता कि निजी पक्षों के अलावा नौकरशाही भी घोटाले में शामिल हो. अदालत ने कहा कि इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जब डॉ.हरमिंदर सिंह बवेजा के खिलाफ शिकायतों का अंबार लगना शुरू हो गया तो राज्य सरकार हरकत में क्यूँ नहीं आई.
उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी
रोचक है कि यह बेहद खराब स्थिति है कि राजनीतिक नेतृत्व सुधारात्मक और उपचारात्मक कदम
उठाना चाहता है पर नौकरशाही उसके कदम घसीट रही है ! क्या वाकई, भ्रष्टाचार के मामले में नौकरशाही के सामने बेबस हैं, पुष्कर सिंह धामी जी ? अगर ऐसा है तो जो नौकरशाही पर
नियंत्रण न रख सके, वह कुर्सी पर ही क्यूँ रहे भला ?
कुल मिला कर उद्यान घोटाले
के मामले में उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ उद्यान विभाग, उद्यान मंत्री, एसआईटी यानि पुलिस, नौकरशाही और पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा
करती हैं.
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
पौड़ी क़ृषि विभाग द्वारा भी लगभग पचास लाख का फ़र्ज़ीबाड़ा करके एक ऐसे सामुदायिक रेडियो को फंडिंग की गयी ज़ब उसको सूचना प्रसारण मंत्रालय से कोई लाइसेंस जारी ही नहीं किया गया था. जिस भूमि के
ReplyDeleteदस्तावेज़ रेडियो केंद्र स्थापित करने के लिए दर्शाए गए हैं उस पर कोई रेडियो केंद्र है ही नहीं. क़ृषि विभाग द्वारा उतिरछा (कोटद्वार ) में ATMA परियोजना के अंतर्गत funded इस रेडियो केंद्र के प्रसारण दस्तावेज़ माँगने पर विभाग दस्तावेज़ उपलब्ध कराने में असक्षम रहा. प्रश्न ये है कि पचास लाख की बंदर बाँट कहाँ तक हुई है?