उत्तराखंड में यूसीसी यानि समान नागरिक संहिता को लेकर एक बार फिर
खबरों का बाज़ार गर्म है.
अभी कुछ दिन पहले एक अखबार में खबर छपी कि यूसीसी बनाने के लिए
उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में बनी
कमेटी का कार्यकाल 26 जनवरी को समाप्त हो गया है. कार्यकाल खत्म होने की यह अवधि कमेटी
को मिले तीसरे विस्तार के बाद की है.
मई 2022 में उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पाँच सदसीय कमेटी का गठन किया.
जब यह कमेटी गठित की गयी तो इसका कार्यकाल छह महीने था. लेकिन
तीन बार के कार्यकाल विस्तारों के बाद कमेटी डेढ़ वर्ष से कुछ अधिक समय तक अस्तित्वमान
बनी रही. बीते लगभग छह महीने से अधिक वक्त से यह दावा समिति की मुखिया और सरकार के
मुखिया दोनों करते रहे कि समिति अपना काम पूरा कर चुकी है और बस रिपोर्ट सौंपने ही
वाली है ! आधा साल बीतने के बाद फिर अखबारों में यह दावा छपा है कि समिति 02 फरवरी
को सरकार को ड्राफ्ट सौंपेगी और 05 फरवरी को राज्य सरकार इसके लिए विधानसभा सत्र करवाएगी.
कुछ समाचार पत्रों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के हवाले से ही यह खबर छपी है
कि यूसीसी कमेटी 02 फरवरी को रिपोर्ट सौंपेगी और 05 फरवरी से होने वाले विधानसभा सत्र
में इसे लेकर विधेयक पेश किया जाएगा.
जिस रिपोर्ट को तैयार करने
में समिति ने डेढ़ साल से अधिक का वक्त लगाया, उसे
तीन दिन के अंदर सरकार पढ़ भी लेगी, उसके आधार पर विधेयक भी तैयार
कर लेगी और उसे विधानसभा में भी पेश कर देगी, यह तो चमत्कारिक
गति है ! ऐसा अन्य मामलों में तो नहीं देखा गया. जमीन के कानून के मसले पर ही देख लीजिये.
एक कमेटी के रिपोर्ट पेश कर देने के लगभग साल भर बाद पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने
उस कमेटी की रिपोर्ट पढ़ने के लिए दूसरी कमेटी का गठन कर दिया है. तो यूसीसी के मामले
में इस हड़बड़ी या तेज गति का क्या मतलब है ? क्या यह तेजी अथवा
हड़बड़ी आसन्न लोकसभा चुनावों को देखते हुए की जा रही है ?
कमेटी के सामने :
भारत के संविधान के भाग चार (Part IV) में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (Directive
Principals Of State Policy) के अंतर्गत अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का उल्लेख है. संविधान का यह भाग बाध्यकारी नहीं है
बल्कि सरकारों के लिए नीति बनाने के समय मार्गदर्शक के रूप में प्रयोग करने के लिए
इसे रखा गया है.
भारत के संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि “ The State shall
endeavour to secure for the citizens a uniform civil code throughout the
territory of India.” यानि राज्य,
पूरे भारत की सीमाओं के अंतर्गत, अपने नागरिकों के लिए एक समान
नागरिक संहिता हासिल करने के उपाय करेगा.
संविधान में उल्लिखित इस वाक्य
से स्पष्ट है कि समान नागरिक संहिता का कोई भी प्रयास पूरे देश के नागरिकों के लिए
किया जाना है. इसमें जिस राज्य शब्द का प्रयोग किया गया है, उसका आशय भी राष्ट्र राज्य (nation state) है, प्रांत नहीं.
यूसीसी के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा बनाई गयी कमेटी ने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी सुझाव के लिए आमंत्रित किया. अपनी पार्टी भाकपा(माले) की ओर से 25 मई 2022 को मैं कमेटी के सामने हाजिर हुआ और लिखित सुझाव दिये.
पार्टी की ओर से दी गयी राय को इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है :
https://www.nukta-e-najar.com/2023/05/equality-not-uniformity-.html
मैंने कमेटी से कहा कि चर्चा के लिहाज से तो यह बेहतर होता कि कमेटी चर्चा के लिए कोई प्रस्ताव रखती. ऐसे किसी प्रस्ताव के अभाव में टिप्पणी कर पाना मुश्किल है. समाचार माध्यमों से जो सामने आ रहा है, उससे लगता है कि किसी ठोस प्रस्ताव के अभाव में जो टिप्पणियां सामने आ भी रही हैं, वे कल्पना की उड़ाने (flights of fantasy) अधिक हैं.
इस पर कमेटी के सदस्यों ने खामोशी
ओढ़ ली.
फिर संविधान में यूसीसी के संदर्भ
में दी गयी परिभाषा का जिक्र मैंने किया कि यह तो पूरे देश की सीमाओं के लिए होना चाहिए, कोई एक राज्य अपने लिए अलग नागरिक संहिता कैसे बनाएगा.
वैसे भी नागरिकता तो देश की ही होती है. इस
पर कमेटी के सदस्य और उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह ने जो संविधान की
ऊपर वर्णित अनुच्छेद 44 की परिभाषा की,
वह मेरी अब तक सुनी-पढ़ी गयी कानूनी परिभाषाओं के लिहाज से अद्भुत थी, अभूतपूर्व थी. उन्होंने कहा कि टेरेटरी ऑफ इंडिया का मतलब यह है कि कभी किसी
हिस्से में बना लें तो कभी दूसरे हिस्से में ! ऐसी चमत्कारिक परिभाषा सुन कर, सिंह साहब के मुख्य सचिव तक के सफर और उसके बाद पोस्ट
रिटायरमेंट असाइनमेंट के तौर पर मुख्य सूचना आयुक्त, मुख्यमंत्री
के सलाहकार और यूसीसी कमेटी के सदस्य तक की यात्रा का महात्म्य स्वतः स्पष्ट हो गया.
यूं कमेटी के पांच में से तीन सदस्यों के लिए तो कमेटी पोस्ट रिटायरमेंट असाइनमेंट ही थी. इस मामले में उत्तराखंड गजब राज्य है. उत्तराखंड के हुक्मरान अपने नौजवानों को रोजगार दे पाएँ या न दे पायें पर अफसरों को वो रिटायरमेंट के बाद बेरोजगार नहीं देख सकते. उनके लिए तत्काल रोजगार का इंतजाम करते हैं. यूसीसी कमेटी भी कुछ कुछ ऐसी ही थी.
कुल मिला कर यह यूसीसी ऐसा चूँ-चूँ का मुरब्बा है, जिससे
राज्य की जनता को कुछ हासिल हो ना हो, लेकिन बिना हींग-फिटकरी
के धामी जी अपनी पीठ थपथापने का इंतजाम कर रहे हैं. सनद रहे कि बिना कमेटी की रिपोर्ट
के भी, वे साल भर से अपनी पीठ थपथपा ही रहे हैं. रिपोर्ट जैसी भी होगी, तब भी
वे खुद की पीठ थपथापते रहेंगे, अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते रहेंगे
और मीडिया रट्टू तोते की तरह धामी जी के द्वारा किए जा रहे खुद के महिमा गान को दोहराता
रहेगा.
नौकरी ना काम धाम, खाली व्हेगी खीसी,
खुस रावा मुंड मा धरा यूसीसी !!
(नौकरी ना काम धाम, जेब है ढीली सी
खुश रहो, सिर माथे बैठाओ यूसीसी )
-
इन्द्रेश मैखुरी
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