22 जनवरी को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सरकारी प्रतिष्ठानों में छुट्टी किया जाना निंदनीय है. एक धार्मिक आयोजन के लिए पूरे सरकारी तंत्र को झोंक देना और पूरे देश के कामकाज को रोक देना कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता.
पहले तो एम्स को भी आधे दिन के लिए बंद कर दिया गया था, बाद में जनदबाव में यह फैसला वापस लिया गया. लेकिन दिल्ली में ही अन्य सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों को आधे दिन के लिए बंद रखा गया है. यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है. सिर्फ सत्ताधारी पार्टी के राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए गंभीर रोगों के मरीजों का जीवन तक खतरे में डाल दिया गया है.
एक धर्म विशेष के आयोजन में, जिसके राजनीतिक निहितार्थ स्पष्ट हैं, में जिस तरह से तमाम प्रशासनिक अधिकारियों और संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्तियों ने स्वयं को लगाया हुआ है, वह पूरी तरह से संविधान विरुद्ध है. लोकसेवकों और प्रशासनिक अफसरों का दायित्व है कि वे निष्पक्ष और निरपेक्ष हो कर काम करें. एक धर्म विशेष के आयोजन के प्रति उनका पूरी तरह से झुक जाना बाकी धर्मावलम्बियों के मन में उनके प्रति संदेह का भाव उत्पन्न करेगा. धार्मिक स्वतंत्रता अपनी जगह है, लेकिन तंत्र के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को एक धर्म विशेष के रंग में रंगने को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता.
इसलिए 22 जनवरी की छुट्टी को रद्द किया जाना चाहिए, अस्पतालों में तो यह छुट्टी किसी सूरत में नहीं होनी चाहिए.
धार्मिक आयोजन की आड़ में मंहगाई, बेरोजगारी, मजदूर, किसानों के मसले, अर्थव्यवस्था की बदहाली जैसे वास्तविक सवालों पर से ध्यान कतई नहीं हटना चाहिए, ना ही धार्मिक आयोजन की आड़ में केंद्र में एक दशक से सत्तासीन मोदी सरकार को इन सवालों से बच निकलने की छूट दी जानी चाहिए.
-इन्द्रेश मैखुरी
राज्य सचिव, भाकपा(माले)
उत्तराखंड
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