“आजी जा दीदी तीं गाड़ी मा अगस्तमुनि
का सैणा
दिन भर भूखा भी रैना, पाणी बिन तिसैण्या”
(और जा दीदी गाड़ी में बैठ कर उस अगस्त्यमुनि के मैदान,
दिन भर भूखे भी रहे, प्यास से हलकान)
एक स्थानीय लोकगायक के गढ़वाली गीत की इन पंक्तियों
का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल है. गीत में किसी महिला को उलाहना दी जा रही है कि
गाड़ी में बैठ कर वो दीदी अगस्त्यमुनि के मैदान गयी और दिन भर फिर भूखी प्यासी रही !
पर सवाल है कि वो दीदी और उन जैसी कई दीदियाँ, अगस्त्यमुनि के
मैदान गयी क्यूँ और गयी तो भूखी-प्यासी क्यूँ रही ?
इन सब का एक जवाब है- उत्तराखंड की भाजपा सरकार के
नारी शक्ति वंदन कार्यक्रम के तहत आयोजित ब्वै-ब्वारी-नौनी
कौथिग (सरकारी बैनर पर ऐसा ही लिखा था) में ! गढ़वाली में लिखे
हुए का मतलब हुआ- मां-बहू-बेटी मेला ! हालांकि यह नामकरण ही बड़ा विचित्र है. पर चलिये
मान लेते हैं कि इसका आशय- मां-बहु-बेटी के लिए आयोजित मेला होगा.
लेकिन 28 जनवरी को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मौजूदगी
में रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि में आयोजित मेला ना तो उसके हिन्दी नाम- नारी
शक्ति वंदन को ही सार्थक कर सका और ना ही गढ़वाली में रखे गए नाम के अनुसार महिलाओं
के लिए मेला ही बन सका.
यह तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सत्ताधारी पार्टी के लिए मेला था, जिनके मेले-ठेले-उत्सव की चाह को साकार करने के लिए राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अगस्त्यमुनि में हेलीकाप्टर उतारने के लिए कई पेड़ काटे गए.
उनके भीड़ की चाह को तुष्ट करने के लिए सारा सरकारी अमला
गाँव-गाँव से महिलाओं को गाड़ियों में ढोह कर अगस्त्यमुनि के मैदान में ले आया.
लेकिन अगस्त्यमुनि के मैदान में लायी गयी महिलाओं के लिए
यह सरकारी मेला, उत्सव, उल्लास न हो कर तमाशा
बन गया, जी का जंजाल
हो गया ! उक्त कार्यक्रम के बाद स्थानीय न्यूज़ पोर्टल- केदारखण्ड एक्सप्रेस और दस्तक पर आए
महिलाओं के वीडियो उनके आक्रोश और यंत्रणा को बयान कर रहे हैं.
उक्त वीडियोज़ में महिलाएं बता रही हैं कि किस तरह इस कड़कड़ाती
ठंड में वे सुबह लगभग सात बजे ही अगस्त्यमुनि के लिए चल पड़ी थी. तब से लेकर दोपहर बीत
जाने तक भी उन्हें खाना और पानी, कुछ भी नसीब नहीं हुआ.
एक वीडियो में तो दिख रहा है कि भूख-प्यास से व्याकुल
महिलाएं मैदान से बाहर निकलना चाहती हैं. लेकिन गेट बंद है तो वे बाहर नहीं जा पा रही
हैं. फिर काफी हुज्जत करने के बाद पुलिस गेट खोल रही है.
आखिरकार यह नारी
शक्ति का कैसा वंदन है पुष्कर सिंह धामी जी, जिसमें उन्हें खाना-पानी
कुछ भी नसीब नहीं हुआ ? यह कैसा ब्वै-ब्वारी-नौनी कौथिग किया
मुख्यमंत्री जी, आपने और आपकी पार्टी ने, जिसमें मां-बेटी-बहु अपनी मर्जी से मैदान से बाहर भी नहीं निकल सकती थी, उन्हें मैदान से बाहर निकलने के लिए पुलिस से हुज्जत करनी पड़ रही थी ! महिलाओं
का सम्मान करने का आयोजन था, धामी जी, यह
या उन्हें घेर कर मैदान के अंदर ला कर, बंधक जैसी स्थितियों में
रख कर भाषण सुनवाने का आयोजन था, यह ? अगर यह महिला सम्मान है तो ऐसे सम्मान और ऐसे सम्मान
की समझ को तत्काल ताले में सीलबंद करके रख दीजिये पुष्कर सिंह धामी जी !
-इन्द्रेश मैखुरी
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