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अंकिता भंडारी के न्याय का प्रश्न

 








अंकिता भंडारी के न्याय का सवाल एक बार फिर से उठ खड़ा हुआ है.








ऋषिकेश से लगते हुए पौड़ी जिले के गंगाभोगपुर के इलाके में वनंतरा रिज़ॉर्ट में सितंबर 2022 में किशोर वय से युवा अवस्था में कदम रखती गरीब परिवार की बेटी अंकिता भंडारी नौकरी करने जाती है.  महीना बीतते-न-बीतते उसकी हत्या हो जाती है. हत्या में रिज़ॉर्ट के मालिक और भाजपा सरकार में दर्जाधारी राज्य मंत्री रहे विनोद आर्य के पुत्र पुलकित आर्य और उसके साथियों का नाम सामने आता है. पुलकित आर्य स्वयं भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के तकनीकी शिक्ष प्रकोष्ठ का गढ़वाल संयोजक रह चुका था.


हत्याकांड के सामने आने और उत्तराखंड से लेकर देश तक इसके सुर्खियों में आने के बाद, पाँच दिन तक राजस्व पुलिस-रेगुलर पुलिस का नाटक चला और अंततः रेगुलर पुलिस ने पुलकित आर्य और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया.


लेकिन डेढ़ साल से अधिक का वक्त बीतने के बाद भी अंकिता भंडारी के प्रकरण में न्याय का सवाल प्रासंगिक बना हुआ है, न्याय होने पर संदेह भी कायम है. इस प्रकरण में अपराधियों के रसूखदार होने और सत्ता पक्ष से पुराने संबंध होने के कारण के अलावा अन्य भी वजहें हैं, जो वास्तविक न्याय प्राप्ति के प्रति संदेह उत्पन्न करती हैं.


बीते दिनों यह मसला फिर नए सिरे से गरमा गया. अंकिता भंडारी के माता-पिता, श्रीनगर(गढ़वाल) में कई दिनों से पीपलचौरी पर अपनी बेटी के न्याय की मांग करते हुए धरने पर बैठे हुए हैं.


इस बीच उत्तराखंड पुलिस के कार्यवाहक महानिदेशक अभिनव कुमार का एक वीडियो बयान आया है. उक्त बयान में कार्यवाहक डीजीपी कह रहे हैं कि  अंकिता भंडारी के केस में उत्तराखंड पुलिस पर किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं था, सरकार की ओर से, माननीय मुख्यमंत्री जी की ओर से पूरा समर्थन मिला...... अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने के लिए उत्तराखंड पुलिस पहले भी कटिबद्ध थी और आगे भी रहेगी, हमारे प्रयासों में कोई कमी नहीं आएगी...........









सुनने में तो यह अच्छी बात ही लगती है. हालांकि यह भी ख्याल आता है कि क्या आज तक किसी मामले में पुलिस ने यह भी कहा होगा कि हमारी ऊपर भारी राजनीतिक दबाव था, इसलिए हम निष्पक्ष, न्यायपूर्ण कार्यवाही नहीं कर सके ! कह ही नहीं सकते, कुर्सी और नौकरी दोनों ही न रहेंगे, अगले रोज !


खैर यह तो परिकल्पना वाली बात हो गयी. अब यथार्थ के धरातल पर उतर कर अंकिता भंडारी केस से जुड़े कुछ तथ्यों की रौशनी में उत्तरखंड पुलिस के कार्यवाहक मुखिया के बयान को परखते हैं.


वनंतरा रिज़ॉर्ट में बुलडोजर चला और एक तरह से हत्या की पूरी योजना जहां बनी (या मुमकिन है कि हत्या भी वहाँ हुई हो), केस के लिहाज से उस महत्वपूर्ण स्थल को ही मिटा दिया गया. उसमें भी जो कुछ बचा रह गया, कुछ दिन में ही वहां आग लग गयी. और आग एक बार नहीं लगी- दो बार लगी. दूसरी बार इसी रिज़ॉर्ट के परिसर में स्थित कैंडी फ़ैक्ट्री में भी आग लग गयी. जबकि अपराध के बाद दावा किया गया था कि इस परिसर को सील कर दिया गया है और बिजली भी काट दी गयी है. दूसरी बार जब 30 अक्टूबर 2022 को आग लगी तो बेहद हास्यास्पद तर्क मौके पर मौजूद लक्ष्मण झूला के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक और बिजली विभाग के अवर अभियंता द्वारा दिया गया कि इन्वर्टर में शॉर्ट सर्किट होने से आग लगी. बिना बिजली सप्लाई के 40 दिन तक चार्ज रहने वाला इन्वर्टर सिर्फ हत्याकांड के मुख्य आरोपी पुलकित आर्य के पास ही था, यह कमाल है !


अपराध स्थल का महत्व तो पुलिस के कार्यवाहक मुखिया, किसी अन्य से अधिक समझते ही होंगे !


अंकिता भंडारी केस का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अंकिता से पुलकित आर्य किसी वीआईपी को “स्पेशल सर्विस” दिलवाना चाहता था, अंकिता ने इंकार किया तो आरोप है कि पुलकित आर्य और उसके साथियों ने अंकिता की हत्या कर दी.


प्रश्न यह है कि अंकिता भंडारी केस का वह “वीआईपी” कौन है ? आज तक भी इस पर खामोशी क्यूँ है ? उत्तराखंड पुलिस क्या वीआईपी के बारे में जानती है ? कुछ दिनों पहले अंकिता भंडारी की माता ने वीआईपी के तौर पर सत्ताधारी पार्टी के एक बेहद अहम पद पर बैठे व्यक्ति का नाम लिया. यह संशय या संदेह की बात हो सकती है. लेकिन क्या डीजीपी साहब के दावे के अनुसार पुलिस इस बात की पड़ताल कर सकती है कि जिस व्यक्ति का नाम लिया गया है,उसका इस केस कोई लेना-देना है या नहीं ? उस व्यक्ति के कॉल डीटेल या अन्य किसी तरीके से उसकी वनंतरा रिज़ॉर्ट में मौजूदगी या गैर मौजूदगी की तसदीक करने की पुलिस ने कोशिश की ?


अगर उत्तराखंड पुलिस पर कोई दबाव नहीं था, ना है और पुलिस अंकिता को न्याय दिलाने को कटिबद्ध भी है तो फिर वीआईपी के मसले पर पुलिस के मुंह में दही क्यूँ जमी हुई है ? जितनी कहानी सार्वजनिक हो चुकी, सारी पुलिस जांच वहीं तक क्यूँ सीमित है, उससे बाहर क्यूँ नहीं निकली ?


पुलकित आर्य आदतन अपराधी (habitual offender) है. 2020 में लॉक डाउन के दौरान बिना किसी वैध कागज और वजह के, वह अपने पिता की सरकारी गाड़ी लेकर जोशीमठ पहुंच गया. 2016 में ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज में बीएएमएस की परीक्षा में उसकी जगह परीक्षा देने के लिए कोई और बैठा. इसके लिए उसे कॉलेज से निकाला भी गया. लेकिन अगले साल परिवार के सत्ता रसूख के चलते पुनः बहाल कर दिया गया. हत्या के प्रयास का मुकदमा तक उसके खिलाफ चल चुका है. लेकिन कभी पुलिस या सत्ता प्रतिष्ठान से उसके खिलाफ कोई कठोर बोल तक नहीं सुनाई दिया.


जांच के दायरे के सीमित रहने और पुलकित आर्य के अन्य कारनामों पर खामोशी पर प्रश्न इसलिए भी खड़ा होता क्यूंकि जब एक लड़की द्वारा वीआईपी को तथाकथित स्पेशल सर्विस यानि जिस्म फरोशी नहीं करने पर उसकी हत्या की गयी तो क्या यह इस रिज़ॉर्ट में जिस्म फरोशी का पहला और अंतिम मामला था ?


असल में वीआईपी का खुलासा होना इसलिए भी जरूरी है क्यूंकि अंकिता भंडारी के केस में तो हत्या का कारण ही वीआईपी है. वीआईपी का खुलासा ना करने का अर्थ होगा कि हत्या के कारण और मकसद को ही छुपा देना. अपराध सिद्ध करने  के मामले में कारण और मकसद का क्या महत्व है, यह भी उत्तराखंड पुलिस के मुखिया जानते ही होंगे.


वीआईपी के संदर्भ में यह गौरतलब है कि उसका नाम छुपाने की हर मुमकिन कोशिश की जाती रही है. दिसंबर 2022 में उत्तराखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल ने बयान दिया कि वीआईपी कोई व्यक्ति नहीं कमरा है !










 सहसा ही यह सवाल पैदा हुआ कि कमरे को वीआईपी सिद्ध करके संसदीय कार्यमंत्री किसका हित साधना चाहते हैं ? यह भी प्रश्न उत्पन्न हुआ कि जब मामला अदालत में विचाराधीन है तो इस तरह के बयान की जरूरत ही क्या थी ? क्या यह हत्या के मकसद को ही धुंधला कर देने वाला बयान नहीं था ?


उत्तराखंड पुलिस के मुखिया के हालिया बयान के आलोक में दिसंबर 2022 में संसदीय कार्यमंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल के उक्त  बयान को देखें तो उत्तराखंड के पुलिस के मुखिया को यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि अग्रवाल साहब के उक्त बयान के बारे में उनकी राय क्या है ? क्या वे या उनकी पुलिस, मंत्री के इस बयान के दायरे से बाहर जा कर वीआईपी का खुलासा कर सकती है ?


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बीते कुछ महीनों से नारी शक्ति वंदन कार्यक्रम में हर जिले में सरकारी खर्च पर महिलाओं का मजमा जुटा रहे हैं. हर जिले में अफसरों और कर्मचारियों को भीड़ जुटाने पर लगाया जाता है. स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को इकट्ठा करके इन कार्यक्रमों में भीड़ बढ़ाई जाती है. मुख्यमंत्री चटनी पीसने जैसे फोटो स्टंट करते हैं और सरकार के साये तले पलने वाला मीडिया इस अदा पर लहालोट होता रहता है. लेकिन पहाड़ में महिलाएं जंगली जानवरों के हमलों का शिकार हो रही हैं, इलाज के अभाव में सड़क पर प्रसव करने और जान गंवाने की हद तक पहुंच रही हैं, उस पर कोई बात नहीं ! और तो और अंकिता भंडारी के मामले में भी न्याय का प्रश्न और वीआईपी का जिक्र तक मुख्यमंत्री अपनी जुबान पर नहीं लाते. जिस समय सितंबर 2022 में  अंकिता भंडारी हत्याकांड हुआ, उस समय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऐलान किया था कि यह केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलेगा. लेकिन फास्ट ट्रैक कोर्ट की वह घोषणा किस ट्रैक में बिला गयी कोई नहीं जानता !


वीआईपी के नाम के मसले पर जब मुख्यमंत्री खामोश हैं, कैबिनेट मंत्री उसे कमरा बता चुके हैं तो पुलिस कितनी ही कटिबद्धता का दावा कर ले, उसकी जांच की गाड़ी, सत्ता की खींची हुई लकीर के दायरे से बाहर नहीं जा सकती ! 

    

    -इन्द्रेश मैखुरी

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1 Comments

  1. बलात्कारियों को संरक्षण ही डबल इंजन सरकार दे रही है, जज इस्तीफा देकर बीजेपी से टिकट पुख्ता कर रहे हैं किससे न्याय की उम्मीद करें भाई

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