2023 में 12 नवंबर को दीवाली का दिन था. तभी खबर आई
कि उत्तराखंड में उत्तरकाशी- ब्रह्मखाल- यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर चार धाम परियोजना
के तहत सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग
का एक हिस्सा ढह जाने से 41 मजदूर सुरंग में कैद हो गए हैं. शुरू में फँसने वाले
मजदूरों की संख्या 40 बताई गयी. पांचवें दिन पता चला कि सुरंग में फंसे हुए
मजदूरों की संख्या 40 नहीं 41 है.
बहरहाल, मजदूरों को निकालने के लिए बचाव अभियान शुरू किया गया. बड़ी-बड़ी मशीनें मंगवाई गयी. रात-रात, दिन-दिन मशीनों के आने और उनके द्वारा मजदूरों को बाहर निकालने के बीच के फासले की खबरें न्यूज़ चैनलों पर चलायी जाती रही. हर दूसरे दिन यह खबर उड़ाई जाती कि बस अगले चौबीस या अड़तालीस घंटे में मजदूर बाहर निकल आएंगे. हालांकि पूरे बचाव अभियान को सिलसिलेवार देखें तो ऐसा लगता है कि हकीकत में कोई नहीं जानता था कि सुरंग को खोलने में वास्तविक जटिलता कितनी है !
समाचार चैनलों में जरूर युद्ध स्तर पर राहत अभियान
चलाने की खबरें चलती रही. लेकिन खबरों में जैसा युद्ध स्तर प्रदर्शित हो रहा था, वैसा यथार्थ के धरातल पर नहीं था. यह इस लेखक का मौके पर देखा का हुआ
अनुभव है. 21 नवंबर 2023 को वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट के साथ जब मैं सिलक्यारा
सुरंग के मुहाने पर पहुंचा तो पता चला कि पहाड़ काटने के लिए लायी गयी ऑगर मशीन तो तकनीकी दिक्कतों के चलते चार दिन से बंद है !
लेकिन टीवी चैनलों पर बचाव अभियान तब भी युद्ध स्तर पर चल रहा था.
बहरहाल दिन बीतते रहे. फिर वहाँ देवता का एंगल भी आ
गया. एक स्थानीय देवता और उसका क्रोध, कहानी में आया तो
न्यूज़ चैनलों के लिए कुछ मसाला हो गया. यह कुछ मद्धम पड़ने लगा तो एक पत्रकार को
सुरंग की बाहरी सतह पर रिसते पानी में
शिवजी की आकृति भी दिखाई देने लगी !
देवता के क्रोध की कहानी के आसपास ही ऑस्ट्रेलिया से आर्नोल्ड
डिक्स नामक शख्स भी सुरंग स्थल पर पहुंचे. इनके बारे में बताया गया कि ये
अंतरराष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ हैं. सुरंग स्थल पर बचाव अभियान में इनकी कोई
उल्लेखनीय भूमिका तो नज़र नहीं आई. अलबत्ता सुरंग के मुहाने पर देवता के अस्थायी
मंदिर के सामने घुटने मोड़ कर बैठे हुए, उनका वीडियो और
तस्वीर, जरूर चर्चा का विषय बने !
एक और उल्लेखनीय काम जो आर्नोल्ड डिक्स ने किया, वो था- यह ऐलान करना कि पहाड़
काटने के लिए लायी गयी अमेरिकन ऑगर मशीन के ध्वस्त होने का ऐलान करना ! यह
बचाव अभियान का 15 वां दिन था, जब आर्नोल्ड डिक्स ने घोषणा
की कि ऑगर मशीन पूरी तरह से ध्वस्त हो गयी है और उसे काट कर सुरंग से बाहर निकालना
होगा.
देसी-विदेशी विशेषज्ञों के विफल होने के बाद जब बचाव
अभियान खटाई में पड़ता नज़र आ रहा था, तब मजदूरों को
सुरंग से निकालने का काम उन मजदूरों के हाथ आया, जिनको रैट
होल माइनर्स कहा जाता है. रैट होल माइनिंग का उपयोग मेघालय में होता रहा है, जहां छोटे छेद बना कर खदान के अंदर से कोयला निकाला जाता था. 2014 में
इसे प्रतिबंधित कर दिया गया.
लेकिन उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में यही रैट होल
माइनर्स काम आए. 17 दिन से सुरंग के भीतर फंसे मजदूरों को इन 12 रैट होल माइनर्स
ने चौबीस घंटे से भी कम अवधि में हाथों से लगभग 12 मीटर खुदाई करके रास्ता बनाते
हुए बाहर निकाल दिया.
28 नवंबर को जब इन रैट होल माइनर्स ने 17 दिन से
सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने में सफलता हासिल की तो इनकी बड़ी वाहवाही
हुई. ये रैट होल माइनर्स मामूली मजदूरी करने वाले श्रमिक हैं, जो बमुश्किल चार सौ रुपया प्रतिदिन का कमाते हैं. जब इन पर तारीफ़ों की
बौछार हो रही थी, तब ही उनमें से एक- फिरोज कुरैशी ने कहा था
कि यह नायकों वाला व्यवहार ज्यादा दिन तक नहीं रहेगा. हम गरीब हैं और ऐसे ही
रहेंगे.
ना केवल उनकी जीवन स्थितियों में कोई उल्लेखनीय बदलाव
नहीं हुआ बल्कि हालिया घटनाक्रम से तो ऐसा लगता है कि उनके योगदान का सम्मान करने
के बजाय उन्हें प्रताड़ित करने का निश्चय ही केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों ने
किया है.
वकील हसन, रैट होल माइनर्स की
टीम के अगुवा थे. 28 फरवरी को दिल्ली में
खजूरी खास स्थित उनके आवास पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने बुलडोजर
चला दिया. भाकपा(माले) की केन्द्रीय कमेटी सदस्य सुचेता डे के नेतृत्व में एक
प्रतिनिधिमंडल ने वकील हसन और उनके परिवार से मुलाक़ात कर,
उनका दर्द साझा किया और पार्टी की तरफ से उन के साथ एकजुटता जाहिर की.
भाकपा(माले) के प्रतिनिधिमंडल को वकील हसन ने बताया
कि उनका घर तोड़ने से पहले उन्हें कोई नोटिस तक नहीं दिया गया. वकील हसन और उनकी
पत्नी को दिल्ली पुलिस ने खजूरी खास पुलिस थाने में बैठा लिया और उनका घर ढहा
दिया.
सिलक्यारा की घटना के बाद इन रैट होल माइनर्स को देश
के नायक जैसा दर्जा हासिल हुआ था. अपनी जान पर खेल कर मजदूरों को बचाने वाले
नायकों के साथ, क्या ऐसा ही सलूक किया जाना जाना चाहिए,नरेंद्र मोदी जी ?
सिलक्यारा में 17 दिन से फंसे 41 मजदूरों को रैट होल माइनर्स ने, जब बाहर निकाल दिया तो इसे नरेंद्र मोदी और पुष्कर सिंह धामी ने अपनी निजी उपलब्धि के तौर पर पेश किया. मोदी की उपलब्धि का बखान करते होर्डिंग लगाए गए. गोदी मीडिया ने “जब मोदी हैं प्रधान तो जरूर बचाएंगे जान ” – जैसे शीर्षकों के साथ प्राइम टाइम शो आयोजित किए. (यह दीगर बात है कि 2021 में भी मोदी ही प्रधान थे, जब 204 मजदूर जोशीमठ में,तपोवन- विष्णुगाड़ परियोजना की सुरंग में दफन हो गए थे.)
अब तीन महीना
बीतते- न बीतते, मोदी की झोली में यह उपलब्धि लाने वाले रैट होल
माइनर्स के अगुवा वकील हसन को बेघर कर दिया गया है, उनका
आशियाना उजाड़ दिया गया है.
जिस सिलक्यारा
टनल से मजदूरों को निकालने में वकील हसन और उनके साथियों ने नायकों जैसी भूमिका अदा
की, उसी सिलक्यारा टनल को लापरवाही से बनाने वाली कंपनी का नाम है- नवयुग इंजीनियरिंग
कंपनी लिमिटेड. नवयुग कंपनी ने सुरंग बनाने में आपराधिक लापरवाही बरत कर 41 मजदूरों
का जीवन खतरे में डाला. 20 फरवरी 2018 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल
की आर्थिक मामलों की समिति ने इस सुरंग को मंजूरी देते हुए उसमें एस्केप रूट का प्रावधान
भी रखा था. लेकिन नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी ने सुरंग में कोई एस्केप रूट यानि संकट के
समय बचाव का रास्ता नहीं बनाया. इसी वजह से मजदूर फंसे. हैरत की बात है कि इस कंपनी
के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई. संसद में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी
से कंपनी का नाम लेकर एस्केप रूट न बनाने के लिए कार्यवाही किए जाने संबंधी सवाल पूछा
गया तो गडकरी ने जवाब के बजाय शाब्दिक लफ़्फ़ाजी का सहारा लिया और अपने मुंह से कंपनी
का नाम तक नहीं लिया !
फरवरी के महीने में सिलक्यारा सुरंग में काम चालू करने
के प्रयास शुरू कर दिये गए हैं. सुरंग में भरे पानी को निकालने की कवायद भी शुरू कर
दी गयी. लेकिन किन्हीं कारणों से सुरंग से पानी निकालने यानि डीवाटरिंग का काम बंद
करना पड़ा ! काम शुरू करके बंद करने से प्रतीत होता है कि सुरंग अब भी सुरक्षित नहीं
है. लेकिन नवयुग कंपनी को घाटा न हो इसलिए काम शुरू करने पर ज़ोर है.
जिस कंपनी ने मजदूरों का जीवन खतरे में डाला, उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं और जिसने मजदूरों को सुरंग से निकालने में जान दांव पर लगाई, उसे इनाम देने के बजाय उसका घर ज़मींदोज़ कर दिया गया !
यह अन्याय है, एक फासिस्ट सरकार
की कृतघ्न कार्यवाही है.
भाजपा का बुलडोजर राज कितने अन्यायपूर्ण तरीके से चल
रहा है, वकील हसन उसकी एक बानगी भर हैं. उनका बुलडोजर अल्पसंख्यकों और गरीबों की
लिए तबाही का परवाना है. सत्ता मद में चूर भाजपाई बुलडोजर,
अपनी जान पर खेल कर 41 मजदूरों को बचाने वाले रैट होल माइनर्स के अगुवा वकील हसन
को भी नहीं बख्श रहा है तो बाकी अल्पसंख्यकों और गरीबों की बिसात ही क्या है ?
इसलिए गरीबों और अल्पसंख्यकों को रौंदने वाले बुलडोजर
राज को ही निर्णायक तौर पर ज़मींदोज़ करना होगा वरना गरीबों के उजड़े आशियाने ही इस
मुल्क की स्थायी पहचान बन जाएँगे !
-इन्द्रेश
मैखुरी
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