आदरणीय डॉ. आशीष चौहान जी,
यदा-कदा सोशल मीडिया
में आपकी तारीफ में बांधे गए पुलों को देखता रहा हूँ. सोशल मीडिया में बांधे गए
किसी के भी तारीफ के पुलों का बहुत मुरीद में कभी ना हो सका. जमीन पर इंजीनियरों द्वारा
बनाए गए पुल ही बहुदा ताश के पत्तों की तरह ढह जाते हैं तो तारीफ के पुलों की क्या
बिसात ! सीमेंट, लोहे आदि के पुलों में कमीशन की कथा तो सर्वज्ञात
है ही. तारीफ के पुल भी मुफ्त तो न बांधे जाते होंगे !
कहने का लब्बोलुआब यह कि सोशल मीडिया में गढ़ी गयी
करिश्माई छवि का मैं बहुत मुरीद नहीं हो पाता. क्षमा करें, आपकी छवि का भी नहीं हो पाया !
बीते दिनों हुए गढ़वाल लोकसभा के चुनाव के दौरान आपके
बर्ताव, बयान आदि को देख कर महसूस हुआ कि मैं ही ज्यादा सही था.
पहले तो खबर आई कि आप मतदान की प्रक्रिया में लगे कार्मिकों की परीक्षा लेने पर उतारू हो गए. चुनाव सम्पन्न करवाना कार्मिकों के लिए अपने आप में बड़ी परीक्षा है, डॉ. साहेब. पर अफ़सरी हनक यह कहाँ समझने देती है ! परीक्षा में पास होने के लिए अस्सी प्रतिशत अंकों की बाध्यता तो पूरे भारत में किसी परीक्षा में नहीं पायी जाती, स्वयं आप जो आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण करके आए हैं,उसमें भी नहीं ! बात सिर्फ परीक्षा तक ही महदूद नहीं रही. आपने तो 1233 कार्मिकों को परीक्षा में असफल होने पर नोटिस ही दे डाला ! शिक्षक संगठनों ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी, उत्तराखंड को जो शिकायती पत्र भेजा, उसमें आप पर अशोभनीय और असंसदीय आचरण करने का आरोप लगाया गया है.
असंसदीय भाषा का अर्थ जानते हैं
आप ? जिसे साधारण भाषा में गाली-गलौच कहते हैं, उसी को सभ्य शब्दावली में असंसदीय भाषा कहते हैं !
यह सोशल मीडिया में करीने से गढ़ी गयी आपकी शांत, सौम्य, संवेदनशील छवि के बिलकुल विपरीत था. शिक्षक
संगठनों के पत्र को पढ़ कर तो पद के मद में चूर, परपीड़क
व्यक्ति की छवि उभरती है !
डॉ.साहेब आपकी छवि का दरकना यहीं नहीं रुका.
19 अप्रैल 2024 को हुए मतदान के दौरान गढ़वाल लोकसभा
क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी श्री अनिल बलूनी द्वारा पौड़ी जिले के कोट ब्लॉक के राजकीय
प्राथमिक विद्यालय खोला में वोट डालने के दौरान पोलिंग बूथ के अंदर की
वीडियोग्राफी की गयी और वह वीडियो अपने फेसबुक पेज पर भी पोस्ट किया गया, जो अब तक वहाँ मौजूद है.
महोदय, पोलिंग बूथ के अंदर
फोटो-वीडियो लेने पर भारत निर्वाचन आयोग द्वारा प्रतिबंध है. पोलिंग बूथ के अंदर
फोटो-वीडियो लेना न केवल आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है बल्कि यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 128(2)
के तहत दंडनीय अपराध है.
उक्त वीडियो के सामने आने के बाद मेरे द्वारा ईमेल से
श्रीमान मुख्य निर्वाचन आयुक्त, भारत निर्वाचन आयोग, नयी दिल्ली और श्रीमान मुख्य निर्वाचन अधिकारी,
उत्तराखंड को ईमेल से शिकायत भेजी गयी. साथ ही दिनांक 20 अप्रैल 2024 को प्रातः 08
बज कर 39 मिनट पर व्हाट्स ऐप के जरिये आपको भी शिकायत भेजी गयी.
लेकिन आज समाचार पत्रों में इस प्रकरण में आपका बयान
हैरत में डालता है. दैनिक समाचार पत्र अमर उजाला में प्रकाशित आपके बयान में कहा
गया है कि “भाजपा प्रत्याशी द्वारा आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर सैक्टर
मैजिस्ट्रेट, एआरओ या कॉंग्रेस प्रत्याशी के द्वारा ऐसा कोई
मामला संज्ञान में नहीं लाया गया है. मामला संज्ञान में लाने पर नियमानुसार
कार्यवाही की जाएगी.”
हुजूर, जिलाधिकारी डॉ
साहेब, क्या इन तीन व्यक्तियों के अलावा कोई और व्यक्ति
मामला आपके संज्ञान में लाएगा तो आप कार्यवाही नहीं करेंगे या संज्ञान ही नहीं
लेंगे ? क्या भारत निर्वाचन आयोग का यह कोई नया दिशा-निर्देश
या कानून है, जिसमें आचार संहिता उल्लंघन का मामला संज्ञान
में लाने हेतु अधिकृत व्यक्ति निर्धारित कर दिये गए हैं ?
जनाब, गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र से चुनाव तो तेरह प्रत्याशी लड़
रहे थे तो आचार संहिता उल्लंघन की शिकायत की अपेक्षा सिर्फ कॉंग्रेस प्रत्याशी से
क्यूँ है ?
अंग्रेजी में एक मुहावरा है- lame
excuse जिसका शब्दशः अनुवाद हुआ लंगड़ा बहाना,
लेकिन जिसका अर्थ है- बचकाने किस्म का बहाना ! हुजूर, आपको
भाजपा प्रत्याशी पर कार्यवाही करने पर कुर्सी जाने का भय सता रहा हो तो बेशक
कार्यवाही न कीजिये, लेकिन इस तरह से टूटी टांग वाले बहाने न
कीजिये, जो दो कदम भी न चल सकें !
आप आईएएस हैं, जिलाधिकारी और जिला
निर्वाचन अधिकारी जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे हैं. स्वतः संज्ञान या suo
motto cognizance जैसे शब्दों से आप वाकिफ होंगे. हुजूर, प्राथमिक तौर पर कानून के उल्लंघन का संज्ञान लेना आपकी ज़िम्मेदारी है.
उसके लिए आप, अपनी इच्छा के लोगों द्वारा मामला संज्ञान में
लाने का इंतजार नहीं कर सकते ! यह बेहद सामान्य बात है.
आचार संहिता उल्लंघन और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 128(2) के उल्लंघन का जो प्रकरण मेरे द्वारा आपको व्हाट्स
ऐप पर भेजा गया, वह तो सोशल मीडिया में अब भी मौजूद है.
हुजूर इसके बाद भी संज्ञान ना लेना चाहें तो यह समझना पड़ेगा कि यह संज्ञान का मसला
नहीं पक्षधरता का मसला है ! एक व्यक्ति के तौर पर डॉ.आशीष चौहान की कुछ भी
राजनीतिक पक्षधरता हो सकती है. लेकिन जिलाधिकारी और जिला निर्वाचन अधिकारी के तौर
पर तो संविधान और कानून ही आपकी पक्षधरता होगी. संविधान की शपथ ले कर पद पर बैठे
हुए अफसर से ही अपेक्षा है कि वो कानून के उल्लंघन पर कार्यवाही करवाएं. जिस दिन श्री
पुष्कर सिंह धामी या श्री नरेंद्र मोदी की शपथ ले लेंगे, उस
दिन यह अपेक्षा नहीं रहेगी !
यह पत्र आपको व्हाट्स ऐप या ईमेल से भी भेज सकता था पर
जब पहले व्हाट्स ऐप से भेजे पत्र का संज्ञान लेने से स्पष्ट इंकार कर दिया गया तो यह
पत्र सीधा सार्वजनिक कर रहा हूँ. इससे यदि किसी तरह की ठेस लगे तो उसे रोकना मेरे वश
में नहीं है !
सधन्यवाद,
उत्तरापेक्षी
इन्द्रेश
मैखुरी
राज्य सचिव, भाकपा(माले)
उत्तराखंड.
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