देहरादून में 16 जून की रात को हुई गोलीबारी में
रायपुर थाना क्षेत्र की गढ़वाली कॉलोनी में रहने वाले रवि बडोला की मौत हो गयी तथा
दो अन्य युवक- मनोज नेगी और सुभाष क्षेत्री घायल हो गए.
प्राप्त जानकारी के अनुसार युवा रवि बडोला उर्फ
दीपक प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता था. रवि ने अपनी कार बेचने को सागर यादव को दी
थी. लेकिन सागर यादव ने यह कार देवेन्द्र उर्फ सोनू भारद्वाज के पास गिरवी रख दी.
रवि बडोला को अपनी कार के सोनू के घर पर होने का पता चला तो
वह अपने दो साथियों के साथ सोनू के घर की तरफ गया. जैसे ही रवि वहां पहुंचा, तो आरोप है कि सोनू,उसके भाई मोनू, उनके घर पर मौजूद मुजफ्फरनगर के हिस्ट्रीशीटर रामवीर आदि ने ताबड़तोड़
फायरिंग कर दी. इस फायरिंग में मनोज नेगी और सुभाष क्षेत्री घायल हो गए और रात में
गोली लगने के बाद रवि बडोला नहीं मिले. सुबह घटनास्थल के 200 मीटर दूर नाले में
रवि का शव मिला.
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर लोगों में बेहद आक्रोश पैदा हुआ और लोग सड़कों पर भी उतरे.
लेकिन इस मामले में कुछ गंभीर सवाल हैं, जो उत्तराखंड की पुष्कर धामी सरकार और उनकी पुलिस से पूछे जाने चाहिए.
वे
सवाल पूछे नहीं जा सके क्यूंकि मामला स्थानीय पीड़ित बनाम बाहरी अपराधी बनाने की
कोशिश की गयी. बाहरी-भीतरी के मामले में बात यहां तक बढ़ गयी कि कतिपय मित्रों ने
तो सोशल मीडिया में इच्छा जाहिर कर डाली कि पहाड़ के लोगों को भी अतीत के पहाड़ी
गुंडों- भरतू दाई, मनमोहन नेगी जैसे
अपने गुंडों की जरूरत है. इस भोलेपन में वे यह भूल जाते हैं कि गुंडे किसी इलाके
के भी हों, उनके हाथों पीड़ित होने वालों में सब होंगे.
उदाहरण के लिए शराब माफिया की खिलाफत करने के कारण पहाड़ी पत्रकार उमेश डोभाल, पहाड़ी शराब माफिया मनमोहन नेगी के गुर्गों द्वारा मौत के घाट उतार दिये
गए. इसलिए गुंडों-अपराधियों में अपना-पराया तलाशने के बजाय उन्हें सिर्फ
गुंडे-अपराधी समझें और उन पर अंकुश लगाने व उन्हें सजा दिये जाने की मांग करें.
यह समझने की
जरूरत है कि अपराध को बाहरी-भीतरी के नज़रिये से देखने पर अपराधियों की मुश्किल भी
कुछ हद तक आसान हो जाती है क्यूंकि इलाके के नाम पर कुछ गोलबंदी तो उनके पक्ष में
भी हो ही जाती है.
रवि बडोला हत्याकांड में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के
बाद भी असल सवाल तो आरोपियों के बेखौफ हो कर अपराध करने के संदर्भ में राज्य सरकार
और उसकी पुलिस की नाकामी पर उठते हैं.
यह बात सामने आई कि सोनू भारद्वाज और उसका भाई मोनू
सूदखोरी करते थे. देहरादून की पुलिस से पूछा जाना चाहिए कि क्या सूदखोरी वैध है ? अगर नहीं तो वे यह सूदखोरी का धंधा खुलेआम कैसे चला रहे थे ? क्या वे पुलिस संरक्षण में ऐसा कर रहे थे या कि पुलिस उनके इस गैर कानूनी
धंधे से अंजान थी ? दोनों ही स्थितियों में सवाल पुलिस पर ही
खड़े होते हैं !
एक वीडियो सोशल मीडिया प्लैटफ़ार्म एक्स (पूर्ववर्ती नाम ट्विटर) पर दिखाई दिया. अस्पष्ट से उस वीडियो में एक महिला अपने घर के आंगन में खड़ी है, चार लोग गली में मोटरसाइकल व स्कूटी पर दिखाई दे रहे हैं.
https://x.com/himalayanhindu/status/1804120210984833184?t=-w4jbmJqW--9xpzHwbDUZQ&s=19
पुरुष स्वर कह रहा है कि उसे कह
देना पहले तो बच गया लेकिन अब अगर देहरादून में दिख गया तो कह के मारूंगा ! वीडियो
में दावा किया गया है कि धमकी देने वाला व्यक्ति सोनू भारद्वाज है. वीडियो में चल
रही कमेंट्री में यह भी कहा जा रहा है कि यह वीडियो मार्च 2024 का है और वीडियो
में दिख रही महिला ने इस मामले में रायपुर थाने में शिकायत भी दी थी. उत्तराखंड
पुलिस और खास तौर पर देहरादून की पुलिस को सामने आ कर स्पष्ट करना चाहिए कि वीडियो
में जो कुछ कहा जा रहा है, क्या वह सही है ? अगर हाँ तो फिर इस मामले में कोई कार्यवाही पुलिस ने अपनी इच्छा से नहीं
की या उस पर कोई दबाव था ?
इस मामले में कार्यवाही का मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण
है क्यूंकि 20 जून 2024 के अखबारों में देहरादून के एसएसपी अजय सिंह का बयान छपा
है, जिसमें उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों ने आरोपी सोनू और मोनू भारद्वाज की
ओर से ब्याज पर पैसा देने के साथ डरा-धमका कर मोटा पैसा वसूलने की शिकायत की थी.
अखबारों में छपे विवरण के अनुसार- एसएसपी ने बताया कि प्रारंभिक जांच में ऐसी कोई
शिकायत थाना स्तर पर नहीं मिली है.
सोशल मीडिया प्लैटफ़ार्म- एक्स पर चल रहे वीडियो में
तो कहा जा रहा है कि एक महिला ने मार्च के महीने में पैसा वसूली के लिए धमकाए जाने
की शिकायत दी थी. तो एसएसपी साहेब को यह फीडबैक किसने दिया कि पैसा वसूली के लिए
डराने-धमकाने की कोई शिकायत थाना स्तर पर नहीं मिली ? वीडियो में दिया जा रहा शिकायत का विवरण सच्चा है या एसएसपी साहेब को प्राप्त
फीडबैक ?
पूरा शासन-प्रशासन आम तौर पर फील गुड अवस्था में रहता
है. प्रदेश में क्या चल रहा है, लगता है कि सामान्य समयों में
किसी की निगाह उस ओर जाती ही नहीं. जैसे ही कोई बड़ी घटना होती है, वैसे ही आनन-फानन में सब जागते हैं और कार्यवाही से ज्यादा हैडलाइन
मैनेजमेंट पर कार्यवाही शुरू हो जाती है ! रवि बडोला हत्याकांड के बाद भी ऐसा ही
हुआ. तुरत-फुरत में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा कर दी कि उत्तराखंड में
जमीन खरीदने वालों की पृष्ठभूमि की जांच होगी. जैसा कि होना ही था कि अखबारों में
यह बात मोटे-मोटे हैडिंग में छपी. डबल इंजन के लोकल ड्राइवर से कोई याद दिलाये कि
हे महाराज, आपके डबल इंजन के जो आपसे पहले वाले लोकल ड्राइवर
थे, उन्होंने 2018 में ही औद्योगिक प्रयोजन के नाम पर पूरा
का पूरा पहाड़ बेचने का कानून पास कर दिया था. 2022 में खुद आपने भी उसमें प्रयोजन
की बाध्यता खत्म कर दी थी ! तो क्या इसके बावजूद भी जमीन बची है प्रदेश में ?
भय्या हैंडसम
धामी जी, आपके बयान से यह ध्वनित हो रहा है कि प्रदेश में संदिग्ध या आपराधिक
पृष्ठभूमि वाले अब तक जमीन खरीदते रहे हैं और उनकी ना कोई जांच होती है, किसी को पता चलता है ! महाराज, आप न केवल
मुख्यमंत्री हैं बल्कि गृह मंत्रालय भी आप ही के पास है. उसी गृह मंत्रालय के अधीन
पुलिस भी आती है और अभिसूचना यानि इंटलिजेंस का महकमा भी ! तो क्या आप यह कह रहे
हैं कि जब तक आपने आदेश नहीं किया तब तक आपके अधीन आने वाले इंटेलिजेंस के महकमे वाले इस बात
से पूरी तरह गाफिल रहते थे कि प्रदेश में बाहर से आकर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले जमीन
खरीद रहे हैं !
रवि बडोला हत्याकांड के लिए जिम्मेदार देवेंद्र कुमार उर्फ सोनू भारद्वाज ने 66 वर्ग मीटर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके घर/डेयरी बनाई हुई है. इस हत्याकांड के बाद सोनू भारद्वाज को उसे तोड़ने का नोटिस देहरादून के उपजिलाधिकारी(सदर) ने दे दिया है.
फिर सवाल खड़ा
होता है कि सरकारी जमीन को खुर्द-बुर्द करने वाले यदि प्रभावशाली होंगे तो उन्हें नोटिस
देने के लिए भी क्या उनके किसी जघन्य अपराध में शामिल होने का इंतजार किया जाएगा ?
रवि बडोला हत्याकांड का मुख्य आरोपी मुजफ्फरनगर का
हिस्ट्रीशीटर रामवीर बताया गया है. अतीत में रामवीर, देहरादून
में ही दो हत्याकांडों के सिलसिले में जेल गया. पहले रामवीर,
अजबपुर निवासी विनय क्षेत्री की हत्या में जेल गया. अखबारों में छपे ब्यौरे के
अनुसार इस मामले में वह जमानात पर छूटा तो देहरादून में जमीन की खरीद-फरोख्त के
कारोबार में लग गया. फिर पंकज सिंह की हत्या में वह जेल गया. अखबारों में प्रकाशित
ब्यौरे के अनुसार वह पैरोल पर बाहर आया हुआ था. वह जमानत पर था या पैरोल पर, लेकिन दो हत्याओं में जेल जा चुका था. ऐसा अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति
देहरादून में आकर रह रहा था, उस पर ना तो इंटेलिजेंस की नज़र
थी और ना ही पुलिस की, गजब है ! पता उसका तभी चला जब वह
तीसरी हत्या करके पुलिस का बैरिकेड तोड़ कर फरार हो गया ! पुष्कर सिंह धामी और
उत्तराखंड पुलिस, क्या बता सकती है कि रामवीर जैसे और कितने
हैं, जिनके अपराध करने का इंतजार किया जा रहा है ?
देहरादून हमेशा से ही कॉस्मोपोलिटन शहर रहा है. देश
भर से लोग यहां आकर बसते रहे हैं. यह इस शहर की विशेषता भी रही है. लेकिन यह पूरे
देश के अपराधियों के छुपने की जगह भी बन जाये, यह बेहद चिंताजनक
है. देश में कहीं अपराध हो, गाहे-बगाहे उसका देहरादून कनेक्शन
निकलता रहता है. हर छठी-छमाही यह होता है कि देश के दूसरे प्रांतों की पुलिस
उत्तराखंड आती है और अपने प्रदेश के किसी अपराधी को यहां से उठा कर ले जाती है. जब
तक ऐसा नहीं हो जाता,बहुदा हमारी पुलिस और इंटेलिजेंस
एजेंसियों को ऐसे अपराधियों के यहां होने का भनक तक नहीं होती !
ये कुछ बेहद गंभीर मसले हैं. अगर देहरादून और
उत्तराखंड को अपराधियों की शरणस्थली बनने से बचाना है तो इन मसलों से गंभीरता
पूर्वक निपटना होगा. सिर्फ हैडलाइन मैनेजमेंट से तो हालात नहीं सुधरने वाले !
-इन्द्रेश मैखुरी
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