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कॉमरेड चारु मजूमदार से एक पुलिस अफ़सर की मुलाक़ात

 


 

कॉमरेड चारु मजूमदार भाकपा(माले) के संस्थापक महासचिव थे. 1967 के नक्सलबाड़ी के ऐतिहासिक किसान विद्रोह से, उन्होंने भारत में क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन के एक नए चरण, एक नये रास्ते का आगाज़ किया. उस नक्सलबाड़ी की क्रांतिकारी ज्वाला को लेकर 22 अप्रैल 1969 में भाकपा (माले) का गठन हुआ और कॉमरेड चारु मजूमदार पार्टी के संस्थापक महासचिव चुने गए.









नक्सलबाड़ी के उस उभार ने जनजीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया. छात्र- नौजवानों उससे प्रभावित हो कर अपने करियर को ठोकर मारकर मेहनतकशों के साथ एकतबद्ध होने गांवों की तरफ निकल पड़े. कला-साहित्य, खासतौर पर कविता में, नक्सल धारा, एक नयी धारा बन कर उभरी.


कॉमरेड चारु मजूमदार का अपने दौर पर प्रभाव किस कदर था, उसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि उसी समय में नए-नए आईपीएस अफ़सर बने मलय कृष्ण धर, उनके राजीनतिक रास्ते से असहमत होते हुए भी मन ही मन उन जैसा क्रांतिकारी होना चाहते थे.  

 

1964 में आईपीएस अफसर हुए मलय कृष्ण धर, आईबी यानि इंटेलिजेंस ब्यूरो के संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए और 19 मई 2012 को वे इस दुनिया से रुखसत हुए.

पुलिस से लेकर इंटेलिजेंस अफ़सर के अपने सफरनामे पर मलय कृष्ण धर की एक किताब है- “ओपन सीक्रेट्स : द एक्सप्लोसिव मेमोयर्स ऑफ एन इंडियन इंटेलिजेंस ऑफिसर”. 








इस किताब में मलय कृष्ण धर, 1967 में कॉमरेड चारु मजूमदार से हुई मुलाक़ात का ब्यौरा लिखते हैं. धर लिखते हैं कि पूर्वी बंगाल में पैदा होने के कारण मुसलमानों से उनके मन में एक घृणा का भाव था, इसलिए वे शुरुआती तौर पर आरएसएस के प्रति आकृष्ट हुए. बाद के दौर में वैचारिक तौर पर वे कॉंग्रेस से वैचारिक रूप से अपने को नजदीक पाते थे. लेकिन कम्युनिस्टों से असहमत होते हुए भी चारु मजूमदार ने उन्हें प्रभावित किया.


मलय कृष्ण धर लिखते हैं कि वे 1966 में तीन बार अपने एक पत्रकार मित्र के साथ दार्जीलिंग में चारु मजूमदार से मिल चुके थे. 1967 में जब वे कॉमरेड चारु मजूमदार से मिले तो तब तक कॉमरेड चारु मजूमदार अंडरग्राउंड नहीं हुए और अपने घर में रहते थे.


मलय कृष्ण धर लिखते हैं कि जब वे कॉमरेड चारु मजूमदार के घर में पहुंचे तो कॉमरेड चारु एक लकड़ी की कुर्सी में बैठे हुए थे. धर लिखते हैं कि मैं जानता था कि अब मेरा उनके घर में स्वागत नहीं है.


कॉमरेड चारु ने धर से पूछा- “क्या है, जो तुम्हें यहां ले आया ?”

धर बोले- “ऐसे ही. मैंने सोचा संपर्क का नवीनीकरण किया जाये.”

इस पर कॉमरेड चारु मजूमदार ने जवाब दिया – “तुम्हारे और मेरे वर्गों के बीच अब संपर्क का बिंदु,  युद्ध का मैदान है, अपनी बंदूकों के साथ तैयार रहो.”  


 थोड़ी और बातचीत का ब्यौरा देते हुए मलय कृष्ण धर लिखते हैं- ऐसे थे चारु मजूमदार. धर लिखते हैं कि “उनकी राजनीतिक वैचारिकी मुझे मंजूर नहीं थी. पर....... उन्होंने भारत के मेहनतकश लोगों के सामने नया परिदृश्य खोल दिया था. मैं गुप्त रूप से यही चाहता था कि मैं उन सब की तरह क्रांतिकारी हो सकूँ. उस दिन (चारु मजूमदार के साथ) मेरी चर्चा से मैं इस बात को समझ चुका था कि भीषण कृषि क्रांति का गड़गड़ाता तूफान अब बहुत दूर नहीं है. बंगाल की खाड़ी के चर्चित तूफानों से अधिक गति से उनका प्रहार हम पर होने वाला है.”


आगे धर लिखते हैं-मैं जानता था कि कमजोर काया के पीछे एक प्रचंड तूफान है, जो निश्चित ही भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में एक नए दौर का सूत्रपात करने वाला है. वे अप्रासंगिक नहीं थे. वे ऐसे निस्स्वार्थ मसीहा थे, जो अपनी धारा को भारतीय राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को बदलता हुआ देखने के लिए जीवित नहीं रहे. लेकिन निश्चित ही उन्होंने वो चिंगारी सुलगा दी, जो  ब्रिटिश राज से विरासत में पायी और सामंती तरीके से संचालित खोखली सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को बदल कर रख देगी, ऐसा मुझे विश्वास है.


यह एक संक्षिप्त ब्यौरा है जो कॉमरेड चारु मजूमदार के बारे में मलय कृष्ण धर की किताब में दर्ज है. निश्चित ही कॉमरेड चारु मजूमदार ने जो सामाजिक-राजनीतिक चिंगारी सुलगाई थी, वो देश के विभिन्न हिस्सों में मशाल बन कर प्रज्वलित है. कॉमरेड चारु मजूमदार का प्रसिद्ध कथन था- जनता का स्वार्थ ही पार्टी का स्वार्थ है ! उनकी पार्टी भाकपा(माले) जनपक्षधरता के उस परचम को मजबूती से थामे हुए, क्रांतिकारी बदलाव के कठिन संघर्ष के रास्ते पर निरंतर गतिशील है.


शहादत दिवस (28 जुलाई) पर कॉमरेड चारु मजूमदार को लाल सलाम !


-इन्द्रेश मैखुरी

 

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