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समाज किधर जा रहा है, इसका ठेका पुलिस का हो ना हो, लेकिन अपराध नियंत्रण पुलिस का ही काम है, एसएसपी साहेब !

 


बीते दिनों उधमसिंह नगर जिले के एसएसपी डॉ. मंजूनाथ टीसी का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे कह रहे हैं कि समाज किस तरफ जा रहा है, ये पुलिस ने अकेले ने ठेका नहीं ले रखा है !








एक जिले के पुलिस प्रमुख के पद पर बैठे हुए आईपीएस अफसर की यह बात बेहद आपत्तिजनक और असंवेदनशील है. लेकिन उधम सिंह नगर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के भाषण में केवल यही बात नहीं है, जो गैर जिम्मेदाराना है बल्कि उनके भाषण का अधिकांश हिस्सा कई दिक्कत तलब बातों से भरा हुआ था.


यह मामला रुद्रपुर के एक निजी अस्पताल में काम करने वाली नर्स के बलात्कार और हत्या से जुड़ा हुआ है.









जिस समय कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज की प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और बलात्कार का मामला सामने आया, लगभग उसी समय रुद्रपुर के एक निजी अस्पताल में नर्स का काम करने वाली युवती के बलात्कार और हत्या के मामले का खुलासा, रुद्रपुर की पुलिस ने किया.


युवती 30 जुलाई को अस्पताल में अपनी ड्यूटी खत्म करने की बाद घर नहीं पहुंची थी. 31 जुलाई को युवती के परिजनों ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट रुद्रपुर पुलिस के पास दर्ज करवाई. 08 अगस्त को उक्त युवती का शव, उधमसिंह नगर की सीमा से लगे उत्तर प्रदेश के बिलासपुर के डिबडिबा के एक मैदान में मिला. 14  अगस्त को पुलिस ने इस मामले में हत्या और बलात्कार के आरोप में राजस्थान के जोधपुर से बरेली (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले धर्मेंद्र कुमार को गिरफ़्तार किया.


इस घटना में पुलिस के खुलासे को लेकर परिजन और अन्य लोग संतुष्ट नहीं हैं.  परिजनों द्वारा मामले की सीबीआई जांच की मांग की जा रही है.


 निजी अस्पताल में काम करने वाली उक्त नर्स के न्याय की मांग को लेकर रुद्रपुर के सरदार भगत सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं और अन्य नागरिकों ने 17 अगस्त को उधमसिंह नगर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर प्रदर्शन किया. वहीं प्रदर्शनकारियों से बातचीत करते हुए उधमसिंह नगर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने वो गैरजिम्मेदाराना बात कही, जिसका वीडियो अंश वायरल है और जिसका जिक्र इस लेख की शुरुआत में किया गया है.


प्रदर्शनकारियों के सामने एसएसपी डॉ.मंजुनाथ टीसी जब आए तो इस तरह घेरे जाने से वे कुछ खीजे हुए नज़र आए. लेकिन फिर भी जब भीड़ ने यह ज़ोर दिया कि दस-पंद्रह लोगों से अलग से वार्ता नहीं होगी बल्कि एसएसपी सबके सामने बात करें तो एसएसपी इस बात के लिए तैयार हो गए. इससे लगा कि बात सहजता से हो जाएगी. लेकिन उसके बाद जिस तरह से वे बातचीत में छात्र-युवाओं पर रौब गालिब करने और कई बार दबे स्वर में धमकाने की कोशिश तक कर रहे थे तो उससे सवालों के घेरे में खड़े किए जाने पर, एसएसपी साहेब की असहजता साफ दिख रही थी.










छात्र-छात्राओं से तादात्म्य स्थापित करने के लिए शुरू में डॉ. मंजूनाथ टीसी ने यह जरूर कहा कि नारेबाजी से उनको अपने कॉलेज के दिन याद आ गए. लेकिन आगे की बातचीत से साफ हो गया कि वे पूरे समय भीड़ से निपटने की अपनी आईपीएस अकादमी की ट्रेनिंग के पाठों को ही निरंतर मन ही मन दोहरा रहे होंगे !   


“वी वांट जस्टिस के नारों पर उनकी प्रतिक्रिया तर्कसंगत थी कि जस्टिस यानि न्याय का मतलब तालिबानी किस्म का नहीं हो सकता है, सड़क पर लोगों को नहीं मारा जा सकता बल्कि न्याय को आपराधिक न्याय तंत्र यानि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के हिसाब से होना चाहिए. हालांकि इस तथ्य से वे वाकिफ होंगे कि जिस सत्ता के अधीन वे काम करते हैं, उसके समर्थक तो मॉब लिंचिंग को ही इस देश में न्याय का पर्याय बनाने पर उतारू हैं. उन्हें भी एसएसपी साहेब और उन जैसे अफसर इतनी ही कठोरता से वास्तविक न्याय का पाठ पढ़ा पाते तो न्याय और उसके तंत्र पर लोगों का भरोसा ज्यादा मजबूत होता. खैर.......


छात्रों की बात सुनने के बाद एसएसपी डॉ. मंजूनाथ टीसी उन पर अपना रौब गालिब करने के लिए सवाल पूछते हैं कि मेरे बार में क्या जानते हो ! भीड़ में से जवाब आता है कि आप एसएसपी हैं और इसी तरह के कुछ जवाब आते हैं. फिर वे सवाल दोहराते हैं कि पद की बात नहीं है, पर्सनली मेरे बारे में क्या जानते हो. फिर वे स्वयं ही बताते हैं कि वे खुद एक क्वालिफाइड एमबीबीएस डॉक्टर हैं. फिर आगे वो कहते हैं कि “आलतू-फालतू नहीं मैं खुद पीजी कार्डियो में कर के आया हूं.” देखा जाये तो यही वो बिंदु है, जहां से एसएसपी साहेब ने ज़िम्मेदारी से बात करने का भाव त्याग दिया वरना आलतू-फालतू डॉक्टर क्या होता है ? क्या पीजी कार्डियो के अलावा उनकी निगाह में बाकी सब डाक्टरी और स्पेशलाइजेशन “आलतू-फालतू” हैं ? और अगर वे इतनी ही गंभीरता से अपनी डॉक्टरी को लेते थे तो फिर उसे छोड़ कर पुलिस में आए ही क्यूँ ?


इन सारे सवालों को छोड़ भी दिया जाये तो सबसे जरूरी सवाल डॉ मंजूनाथ से उस मौके पर बनाता था, वो यह कि क्या वहां पर लोग एमबीबीएस या पीजी कार्डियो वाले डॉक्टर से मिलने आए थे ?  या कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार जिले के आला पुलिस अधिकारी से मिलने आए थे ? वे डॉक्टर ना भी होते तब भी, उन्हें मृतका की हालत के संदर्भ में पूछे गए सवालों का जवाब देना ही होता. ऐसे मौके पर कोई भी अफसर होगा तो उससे यही अपेक्षा की जाएगी कि वो तथ्यों और वैज्ञानिक आधार पर बोले.


 ऐसा तो हो नहीं सकता कि हर अपराध के मामले में पुलिस में जो डॉक्टरी पढ़े अफसर हैं, वही मौके पर हों !


गुमशुदगी दर्ज करने के मामले में वे सही कानूनी स्थिति बताते हैं. जांच की प्रक्रिया समझाते हैं. शरीर के गलने की प्रक्रिया का ब्यौरा उन्होंने दिया कि सात दिन खुले में शरीर पड़ा रहेगा तो शरीर तेजी से गलेगा.


लेकिन यह अजीब बात है कि खुले में या झाड़ियों में शरीर पड़ा हुआ था, उसे किसी ने देखा भी नहीं और उससे सातवें दिन जा कर दुर्गंध महसूस हुई !


परिजन और अन्य लोग आशंका जता रहे हैं कि इस पूरे प्रकरण में एक से अधिक व्यक्तियों की भूमिका हो सकती है. परिजन तो जिस अस्पताल में मृतका काम करती थी, उस पर भी संदेह प्रकट करते हैं. परिजनों का आरोप था कि अस्पताल के किसी व्यक्ति ने उनसे बात नहीं की, ना कोई उनकी पीड़ा जानने आया. लेकिन एसएसपी अपने वक्तव्य में कहते हैं कि अस्पताल के लोग लगातार उन्हें फोन करते रहे. सवाल यह है कि जिन अस्पताल वालों को इतनी चिंता थी कि वे एसएसपी से लगातार बात कर रहे थे, वही अस्पताल वाले पीड़िता के परिवार के प्रति बेरुखी क्यूँ अपनाए हुए थे ?  


लोगों से बातचीत के इस क्रम में एक जगह एसएसपी डॉ. मंजूनाथ टीसी कह रहे हैं कि “मैंने ये नहीं देखा कि अपराध यूपी में हुआ क्यूंकि मैं तो इंडियन पुलिस सर्विस से हूं, घटना से मुझे घिन्न आई कि एक महिला से ऐसा कर रहे हो, मुझे बहुत संवेदनशीलता है, उसे फांसी चढ़ाना मेरी प्राथमिकता है.”


 इतनी संवेदनशीलता और गंभीरता प्रदर्शित करने के बाद बातचीत के एक अंश में वे कह देते हैं कि समाज किस तरफ जा रहा है, ये पुलिस ने अकेले ने ठेका नहीं ले रखा है. ठेका जैसे शब्दों का इस्तेमाल एक गंभीर अपराध के मामले में अगंभीर और असंवेदनशील रुख प्रदर्शित करता है. अकेली पुलिस जिम्मेदार भले ना हो, लेकिन हर होने वाले अपराध को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ही प्रमुख तौर पर जिम्मेदार है, डॉ.  मंजूनाथ टीसी !  

 

          -इन्द्रेश मैखुरी

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