कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक प्रशिक्षु
डॉक्टर के हत्या और बलात्कार के मामले के साथ ही उत्तराखंड में भी महिलाओं के विरुद्ध
यौन अपराधों का एक सिलसिला जैसा शुरू हो गया.
लगभग उसी दौरान रुद्रपुर के एक निजी अस्पताल में काम करने
वाली नर्स के हत्या और बलात्कार का मामला सामने आया. इस मामले में बरेली के रहने वाले
एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया. लेकिन परिजनों ने पुलिस जांच के प्रति असंतोष जाहिर
किया और इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की जा रही है. उसके बाद देहरादून आईएसबीटी में एक नाबालिग बच्ची
के साथ गैंगरेप का मामला सामने आया, जिसमें उत्तराखंड रोडवेज
के ही पांच नियमित और ठेके के कर्मचारियों की संलिप्तता पायी गयी.
इसी दौरान और भी कई घटनाएँ सामने आई. इसमें पिथौरागढ़ जिले
के गंगोलीहाट की घटना अत्यंत गंभीर थी, जिसकी चर्चा कम हुई. वहाँ एक व्यक्ति ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई कि उसकी
नाबालिग बेटी के साथ पिछले कुछ वर्षों से कुछ लोगों द्वारा लगातार दुष्कर्म किया जा
रहा है. इस मामले में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया,
जिसमें एक महिला भी शामिल है.
इन घटनाओं के खिलाफ राज्य में अलग-अलग संगठनों एवं राजनीतिक
पार्टियों द्वारा विरोध प्रदर्शन भी किए गए, लिखा-बोला भी गया और
महिला सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता भी प्रकट की गयी.
सत्ताधारी भाजपा ने इन घटनाओं पर खामोशी बरतना ही उचित
समझा या फिर यूं कहें कि जितनी आक्रामक प्रतिक्रिया पश्चिम बंगाल की घटना पर व्यक्त
की जा रही थी, वह आक्रामकता गायब हो गयी. बल्कि यह किया गया कि जब
उत्तराखंड में एक के बाद एक यौन शोषण के मामले सामने आने लगे तो बांग्लादेश में हिंदुओं
पर अत्याचार के विरुद्ध विरोध-प्रदर्शन किया गया.
बीते कुछ दिनों में फिर उत्तराखंड में यौन अपराधों के
नए मामले सामने आए हैं. अल्मोड़ा जिले के सल्ट में भाजपा के मंडल अध्यक्ष भागवत बोरा
पर बकरी चराने गयी बच्ची के साथ दुष्कर्म का आरोप लगा. नैनीताल जिले के दुग्ध संघ के
अध्यक्ष और भाजपा नेता मुकेश बोरा पर दुग्ध संघ में आउटसोर्सिंग के तहत नियुक्त दैनिक
वेतन भोगी महिला कर्मचारी ने बलात्कार, अश्लील वीडियो बनाने
और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया. चमोली जिले के घाट(जिसे अब नंदानगर कहा
जा रहा है) में नाई का काम करने वाले आरिफ़ पर एक नाबालिग बच्ची को अश्लील इशारे करने
का आरोप लगा.
इन तीनों मामलों में जिस तरह की प्रतिक्रिया सामने आई, उसे देख कर पुनः यह सवाल उठता है कि हमारे समाज को महिलाओं के विरुद्ध होने
वाले अपराध पर गुस्सा आता है या फिर उसके आक्रोश के बीज कहीं और दबे हुए हैं ?
यह प्रश्न इसलिए हैं क्यूंकि सल्ट और नैनीताल जिले की
घटनाओं के बेहद जघन्य होने के बावजूद उन पर प्रतिक्रिया काफी ठंडी थी, जबकि घाट की घटना पर प्रतिक्रिया बेहद आक्रामक !
सल्ट की घटना में तो आरोपी द्वारा परिवार पर रिपोर्ट न
दर्ज करवाने के लिए दबाव बनाने की भी खबर है और यह भी आरोप है कि जब रिपोर्ट दर्ज की
गयी तो उसमें धाराएँ कमजोर लगाई गयी.
नैनीताल वाले मामले में पीड़िता अपनी शिकायत लेकर नैनीताल
के एसएसपी के पास गयी, उन्होंने पीड़िता को कोतवाली जाने को कहा.
दो कोतवालियों की पुलिस उन्हें इधर से उधर दौड़ाती रही. 31 अगस्त को देर रात में बड़ी
मुश्किल से शिकायती पत्र की रिसीविंग दी गयी. अगले दिन भारी दबाव के बाद ही दोपहर बाद एफ़आईआर दर्ज
की गयी. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आरोपी
की गिरफ्तारी नहीं हुई है.
घाट की घटना में एफ़आईआर दर्ज हुई. आरोपी के पूरे समुदाय
के विरुद्ध प्रदर्शन किया गया, नफरत भरे नारे लगाए गए, दुकानों में तोड़फोड़ की गयी. फरार आरोपी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने
के बाद भी विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी रहा. और विरोध प्रदर्शन केवल घाट(नंदानगर)
तक सीमित नहीं रहे बल्कि चमोली जिले के अन्य नगरों में भी सांप्रदायिक विद्वेष भरे
नारों के साथ प्रदर्शन किए गए. राज्य भर में सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाले तत्व इस
मामले को हवा देने चमोली जिले में पहुँच गए.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रतिक्रिया भी केवल
घाट(नंदानगर) के मामले में ही सामने आई. एक्स
(पूर्व नाम ट्विटर) पर मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि
“जनपद चमोली में एक नाबालिग के साथ छेड़छाड़ की घटना को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह
धामी ने बेहद गंभीरता से लिया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मामले में जो भी दोषी
होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मामले में चमोली पुलिस
प्रशासन से यथोचित कार्रवाई के निर्देश दिये गए हैं. ”
मुख्यमंत्री सिर्फ एक घटना विशेष पर बयान देते
हैं, उसमें भी वे कानून-व्यवस्था कायम रखने, शांति बनाने
की कोई अपील नहीं करते. लेकिन बलात्कार की दो घटनाएं, जिनमें
उनकी पार्टी के नेता संलिप्त हैं, जिन मामलों में एफ़आईआर
लिखवाना तक पीड़ितों के भारी मशक्कत का काम हो गया, उन मामलों
पर मुख्यमंत्री चुप्पी साध लेते हैं. जाहिर सी बात है कि महिलाओं या लड़कियों की
सुरक्षा से मुख्यमंत्री और भाजपा के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ज्यादा जरूरी है !
इसलिए मुख्यमंत्री सिर्फ एक मामला, जिसमें अपराध से ज्यादा ज़ोर
धार्मिक उन्मादी रंग देने पर है, उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त
करते हैं और अन्य बलात्कार के दो मामले, जिनमें उनकी पार्टी
के नेता शामिल हैं, उन पर चुप्पी साध लेते हैं ! यह एक तरह
से सांप्रदायिक तत्वों को इशारा भी है कि वे अपना उन्मादी अभियान जारी रखें और यह
बलात्कार के आरोपों में फंसे अपनी पार्टी के नेताओं पर से ध्यान हटाने की कोशिश भी
है.
घाट में तो छेड़छाड़ के आरोपी के पक्ष में कोई जुलूस
नहीं निकाल रहा था, लेकिन वहां तोड़फोड़ और अराजकता की गयी.
दूसरी तरफ नैनीताल दुग्ध संघ के अध्यक्ष रहे मुकेश बोरा पर बलात्कार के मामले में
एफ़आईआर दर्ज होने के बाद अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. उल्टा बोरा के पक्ष में
महिलाओं को इकट्ठा करके जुलूस की शक्ल में कोतवाली ले जाया गया. बेशर्मी की इंतहा
यह थी कि इस जुलूस का बाकायदा फेसबुक लाइव किया गया.
यह उत्तराखंड में बलात्कार के आरोपी के पक्ष में जुलूस
निकाले जाने का संभवतः पहला मामला है. अलबत्ता भाजपा के लिए यह नयी बात नहीं है. जम्मू
के कठुआ में जब एक नाबालिग बच्ची आसिफा के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया तो उसके
आरोपियों के पक्ष में भाजपा ने तिरंगा रैली निकाली थी ! बिलकिस बानो के गेंगरेप में
सजा पाये हुए लोगों को संस्कारी बता कर छोड़ा गया. नवंबर 2023 में बीएचयू आईआईटी के
गेंगरेप के दो आरोपी हाल में जमानत पर छूट कर आए तो उनके फूल मालाओं से स्वागत किए
जाने का चर्चा है. बलात्कार और हत्या के दोषी सिद्ध होने के बाद रामरहीम को हर चुनाव
के वक्त भाजपा राज में पैरोल मिलती रही है. 2017 में सजा पाने के बाद वह अब तक 255
दिन पैरोल पर जेल के बाहर रह चुका है. राजस्थान में भी भाजपा की सरकार आने पर इस 15
अगस्त को आसाराम को पैरोल मिल गयी.
इस लेख में उत्तराखंड में बीते दिनों हुए महिलाओं, युवतियों के यौन शोषण और यौन हिंसा के कई मामलों का जिक्र है. लेकिन किसी भी मामले में धर्म का सवाल नहीं खड़ा हुआ. रुद्रपुर की नर्स के बलात्कार और हत्या के मामले में ना तो मृतका के धर्म की चर्चा हुई और ना ही आरोपी के धर्म की, देहरादून आईएसबीटी गैंग रेप में भी पीड़िता और आरोपी के धर्म पर कोई सवाल नहीं हुआ, सल्ट और नैनीताल के प्रकरणों में भी पीडिताओं और आरोपी के धर्म की चर्चा या इनमें से किसी के धर्म की चर्चा नहीं हो रही है. होनी भी नहीं चाहिए, चर्चा अपराध की गंभीरता पर होनी चाहिए. लेकिन सिर्फ घाट के मामले में ही अपराध की गंभीरता से ज्यादा धर्म की चर्चा क्यूँ हुई ? बलात्कार और उसके बाद हत्या के मामले में कहीं पर ना तोड़फोड़ हुई ना मारपीट, ठीक हुआ नहीं हुई. लेकिन छेड़छाड़ के मामले में मारपीट, तोड़फोड़ और सांप्रदायिक घृणा का प्रसार जम कर हुआ तो इससे क्या समझ में आता है ? इससे तो यही प्रतीत होता है कि अपराध से ज्यादा प्रतिक्रिया करने से पहले यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि आरोपी का धर्म क्या है ! आरोपी स्वधर्मी हो तो चुप्पी साध लो और आरोपी का धर्म अलग हो तो फिर आरोपी के पूरे समुदाय के विरुद्ध आग उगलने लग जाओ ! इसका आशय यह है कि आपको आरोपी के अपराध से नहीं, उसके धर्म से दिक्कत है या फिर अपनी दबी-ढकी-छुपी सांप्रदायिक घृणा की तुष्टि के लिए ऐसे मौकों को अवसर की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. यह प्रवृत्ति जितनी समाज में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खतरनाक है, उतनी ही महिला सुरक्षा के लिए भी घातक है क्यूंकि प्रतिक्रिया अपराध की गंभीरता के आधार पर नहीं अपराधी के धर्म के आधार पर होगी तो स्वधर्मी अपराधी होने पर तो महिला नितांत अकेली हो जाएगी, अपने साथ हुए अपराध का मुक़ाबला करने में !
धर्म देख कर अपराध के विरुद्ध प्रतिक्रिया तय करना पतनशीलतता
का लक्षण है !
-इन्द्रेश मैखुरी
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