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जंगलात के महकमे में क्या जंगल राज चला रहे हैं, धामी जी ?

 




 4 सितंबर 2024 को उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर एक बेहद कठोर टिप्पणी की. उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति बीआर गवई ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर टिप्पणी करते हुए कहा “हम सामंती दौर में नहीं हैं कि जैसा राजा जी बोलें वैसे ही चले. ”







उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति वीके विश्वनाथन की खंडपीठ, जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय पार्क में अवैध निर्माण और पेड़ों के कटान के मामले की सुनवाई कर रही थी. अदालत के संज्ञान में लाया गया कि विभागीय कार्यवाही के लंबित होने के बावजूद आईएफ़एस अफसर राहुल को राजाजी राष्ट्रीय पार्क का निदेशक बना दिया गया.


आईएफ़एस अफसर राहुल का मामला बीते दिनों तब चर्चित हुआ, जब अंग्रेजी अखबार- इंडियन एक्सप्रेस ने 29 अगस्त 2024 के अंक में भ्रष्टाचार के आरोपों में जांच का सामने कर रहे आईएफ़एस अफसर राहुल को राजा जी पार्क का निदेशक बनाए जाने के मामले में एक खोजपूर्ण स्टोरी की. इस खबर में इंडिया एक्सप्रेस के जय मजूमदार ने लिखा कि प्रमुख सचिव(वन), मुख्य सचिव और वन मंत्री ने राहुल को नियुक्त ना किए जाने का नोट फाइल पर लिखा, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसको दरकिनार कर, आईएफ़एस अफसर राहुल को राजाजी पार्क का निदेशक बना दिया.









इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार 18 जुलाई को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की संस्तुति पर वन मंत्री सुबोध उनियाल ने 12 आईएफ़एस अफसरों के तबादले की संशोधित सूची प्रस्तुत की. उक्त सूची में जो नाम जोड़े गए, उनमें राजाजी राष्ट्रीय पार्क के निदेशक के तौर पर राहुल का नाम भी शामिल था.


अखबार ने लिखा कि एक हफ्ते बाद 24 जुलाई को फाइल मुख्यमंत्री के पास पुनः भेजी गयी और इसमें प्रमुख सचिव(वन), मुख्य सचिव और वन मंत्री का नोट लगा था कि राहुल के खिलाफ चल रही अनुशासनात्मक कार्यवाही, सीबीआई जांच और  कॉर्बेट पार्क के अंदर पाखरो टाइगर सफारी के लिए पेड़ों के अवैध कटान और निर्माण के मामले में उच्चतम न्यायालय में चल रहे केस को देखते हुए राहुल की नियुक्ति पर पुनर्विचार किया जाये. नोट में राहुल के मामले में यथास्थिति कायम रखने का सुझाव देते हुए, राजाजी राष्ट्रीय पार्क का प्रभार, अगल-बगल के इलाके में सेवारत अफसर को देने का प्रस्ताव किया गया.


इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक तमाम सुझावों को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आदेश दिया कि “ सीसीएफ़ राहुल को राजाजी पार्क का निदेशक नियुक्त करने का प्रस्ताव किया गया था और उसकी संस्तुति कर दी गयी है. तदानुसार आदेश जारी करें.” और अगले ही दिन “जनहित में” नियुक्ति का आदेश जारी कर दिया गया !


इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर छपने के बाद उत्तराखंड में काफी हलचल मची. आनन-फानन में वन मंत्री सुबोध उनियाल ने बयान दिया कि आईएफ़एस राहुल की राजाजी राष्ट्रीय पार्क के निदेशक के तौर पर नियुक्ति मुख्यमंत्री ने उनकी सहमति से की है. उत्तराखंड के तमाम अखबारों और पोर्टल्स ने मंत्री के बयान को पत्थर की लकीर समान सत्य की तरह प्रकाशित किया. यह हैरत की बात है कि जिन अखबारों और पोर्टल्स को इतने बड़े गड़बड़झाले की खबर नहीं लगी या उन्होंने जनता को नहीं लगने दी, वे सब मंत्री का सफाई वाला बयान बढ़-चढ़ कर छापने में शामिल हुए !


उत्तराखंड के अखबारों और पोर्टल्स ने तो वन मंत्री का बयान अंतिम सत्य की तरह छाप दिया, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने वन मंत्री के दावे की पूरी चीरफाड़ करते हुए इस मामले की एक टाइमलाइन भी प्रकाशित की.








अखबार ने लिखा कि वन मंत्री भले ही दावा करें कि निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया, लेकिन आधिकारिक दस्तावेज़ अलग ही कहानी कहते हैं.


उच्चतम न्यायालय की जिस कठोर टिप्पणी का जिक्र इस लेख के शुरू में किया गया है, संभवतः इंडियन एक्सप्रेस की खबर के बाद उत्तराखंड सरकार को उसका भान हो गया था, इसलिए राहुल की राजाजी राष्ट्रीय पार्क के निदेशक के तौर पर की गयी नियुक्ति, कुछ दिन बाद ही रद्द कर दी गयी !


और यह एकलौता मामला नहीं है. 30 अगस्त को खबर आई कि आईएफ़एस अफसर सुशांत पटनायक को वन मुख्यालय में मुख्य वन संरक्षक एनटीएफ़पी (नॉन टिंबर फॉरेस्ट प्रॉडक्ट्स) की ज़िम्मेदारी दे दी गयी है.


इसी साल फरवरी में आईएफ़एस अफसर सुशांत पटनायक के घर पर ईडी ने अवैध धन शोधन (मनी लॉंन्ड्रिंग) के मामले में छापा मारा. उनके घर से करोड़ों रुपये बरामद होने की खबर आई. खबरों के अनुसार उनके घर पर मिली नकदी इतनी अधिक थी कि ईडी को यह रुपया गिनने के लिए नोट गिनने की दो मशीनें मंगवानी पड़ी.


इससे पहले उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का सचिव रहते हुए, सुशांत पटनायक पर एक युवती के साथ छेड़खानी का आरोप लगा. इसके अलावा युवती ने पटनायक पर व्हाट्स ऐप में अश्लील मैसेज भेजने का भी आरोप लगाया. इस मामले में पुलिस में एफ़आईआर दर्ज हुई और पटनायक को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से हटा कर वन मुख्यालय से संबद्ध कर दिया गया.  

 

 पटनायक पर तमाम मामले होने के बावजूद उनकी नियुक्ति के सुर्खियों में आने के अगले दिन खबर आई कि मुख्यमंत्री के आदेश के बाद उक्त नियुक्ति रद्द कर दी गयी है. 








आईएफ़एस अफसरों को नियुक्ति तो शासन स्तर पर ही की जाती है. आईएफ़एस राहुल के प्रकरण में आई खबरों से साफ है कि मुख्यमंत्री का पूरा दखल इन नियुक्तियों में रहता है. तब सवाल है कि सुशांत पटनायक की नियुक्ति मुख्यमंत्री की जानकारी के बगैर हुई या उन्होंने जानते-बूझते नियुक्ति होने दी और फिर हैड लाइन मैनेज करने के लिए नियुक्ति रद्द करने में मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप का जिक्र हुआ ? दोनों ही स्थितियों में सवाल तो मुख्यमंत्री पर ही उठेंगे !


राहुल और सुशांत पटनायक का नाम जिस पाखरो टाइगर सफारी के मामले में आया है, वो लगभग 157 करोड़ का मामला है. दोनों अफसरों पर गंभीर आरोप के बावजूद उन्हें प्रमुख पदों पर नियुक्त करने की कोशिश दिखाती है कि भ्रष्टाचार के आरोपों की गंभीरता पर गौर करने से ज्यादा उतावली इन दोनों अफसरों को नियुक्त करने की है ! लेकिन मामला चर्चा में आ जा रहा है तो छीछालेदर होती देख कदम पीछे खींचे जा रहे हैं.


जंगलात के महकमे में ऐसा जंगल राज चलाने की कोशिशों के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को उनके संदर्भ में कही गयी, उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति बीएस गवई की यह बात याद रखनी चाहिए कि “इस देश में जन विश्वास के सिद्धांत जैसा कुछ है,सार्वजनिक पदों के प्रमुख जो मर्जी आए,वो नहीं कर सकते हैं...... सिर्फ इसलिए कि वो मुख्यमंत्री हैं, क्या वो कुछ भी कर सकते हैं ?


-इन्द्रेश मैखुरी   

 

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