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सरकारी शिक्षण संस्थानों पर ताला लगाएंगे, सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड का बनाएंगे !

 



 यह दावा निरंतर ही किया जाता रहता है कि भारत विश्वगुरु बनने के कगार पर खड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बार कहने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस बात को मंत्र की तरह जपते रहते हैं कि इस सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड का होगा !


लेकिन क्या ये सब शिक्षा के बिना मुमकिन है ? क्या शिक्षा के संस्थानों पर निरंतर ताला लगाते हुए कोई समाज, राज्य या देश आगे बढ़ सकता है ? आम तौर पर ऐसा मुमकिन तो नहीं दिखता. लेकिन जो इस सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड बनाने का दावा कर रहे हैं, उन्हीं के राज में उत्तराखंड में सरकारी शिक्षा के संस्थानों पर लगातार ताले भी लग रहे हैं.


अंग्रेजी अखबार- द न्यू इंडियन एक्सप्रेस- ने इसी साल मार्च में एक रिपोर्ट प्रकाशित की कि उत्तराखंड में 1671 सरकारी स्कूल बंद हो गए हैं. शिक्षा निदेशलय से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर लिखी गयी इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 3573 स्कूल ऐसे हैं जिनमें छात्र-छात्राओं की संख्या दस से कम है. इनमें से 102 स्कूल तो ऐसे हैं, जहां छात्र संख्या मात्र एक है. जाहिर सी बात है कि ये स्कूल भी ताला लगने के कगार पर खड़े हैं.



https://www.newindianexpress.com/nation/2024/Mar/25/over-1600-govt-schools-ceased-operations-in-uttarakhand-nearly-3600-on-verge-of-closure




और सिर्फ सरकारी स्कूल ही नहीं हैं, जिन पर निरंतर सरकार के द्वारा ताले लगाए जा रहे हैं बल्कि तकनीकि शिक्षा के संस्थानों में भी पाठ्यक्रमों की बंदी का एक सिलसिला चल निकला है.


26 सितंबर 2024 को प्राविधिक शिक्षा निदेशक ने उत्तराखंड के विभिन्न पॉलीटेक्निकों के प्रधानाचार्यों को पत्र भेज कर उनके संस्थान में बंद किए जाने वाले पाठ्यक्रमों की सूची भेजी है. 











यह हैरत की बात है कि तमाम आधुनिक किस्म के तकनीकि पाठ्यक्रम इन संस्थानों में छात्र संख्या का हवाला दे कर बंद किए जाने का फरमान सुना दिया गया है. क्लाउड कम्प्युटिंग एंड बिग डाटा, गेमिंग एंड एनिमेशन, केमिकल टेक्नालजी (रबर एंड प्लास्टिक), सिविल एंड एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग, इन्फॉर्मेशन टेक्नालजी, कम्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग जैसे पाठ्यक्रमों के साथ ही सिविल, मैकेनिकल, इलैक्ट्रिकल और इलेक्ट्रोनिक इंजीनियरिंग जैसे तमाम पाठ्यक्रमों को बंद किया जा रहा है.









 तर्क सबके लिए एक ही है कि छात्र संख्या कम है. प्रदेश के पॉलीटेक्निक संस्थानों में छात्र संख्या कम होने के बहाने के साथ सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों में कोर्सों पर ताला नहीं लगाया जा रहा है बल्कि देहरादून और उधमसिंह नगर जिले जैसे मैदानी इलाकों में भी आधुनिक कोर्सों पर ताला लगाने के लिए छात्र संख्या का बहाना बनाया जा रहा है. 











देहरादून के सुद्दोवाला में क्लाउड कम्प्युटिंग एंड बिग डाटा का कोर्स छात्र संख्या के अभाव में बंद किया जा रहा है तो आमवाला में ऐयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम कम छात्र संख्या का तर्क देते हुए बंद किया जा रहा है. उधमसिंह नगर जिले के शक्तिफार्म स्थित पॉलीटेक्निक में केमिकल टेक्नालजी (रबर एंड प्लास्टिक) का पाठ्यक्रम भी कम प्रवेश के चलते बंद करने का फरमान सुना दिया गया है ! सोचिए तो जरा कि क्या वाकई इन आधुनिक किस्म के पाठ्यक्रमों के लिए उत्तराखंड के सुगम मैदानी जिलों- देहरादून और उधमसिंह नगर में छात्र-छात्राएँ नहीं होंगे या फिर मामला कुछ और है ? यह भी सार्वजनिक होना चाहिए कि जिन पाठ्यक्रमों को बंद किया जा रहा है, उनमें शिक्षकों या इंस्ट्रक्टर नियुक्त किये गए थे या नहीं ? यदि शिक्षक नहीं थे तो उन पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले कर छात्र- छात्राएं क्या करते और यदि शिक्षक नियुक्त थे तो पाठ्यक्रम बंद होने पर उनका क्या होगा? 










मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विधानसभा क्षेत्र चंपावत और तकनीकि शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल के विधानसभा क्षेत्र नरेंद्रनगर के पॉलीटेक्निक भी उन पॉलीटेक्निकों में शामिल हैं, जहां कम छात्र संख्या का हवाला दे कर कोर्स बंद करने की चिट्ठी जारी कर दी गयी है. कुल मिलाकर उत्तराखंड के 15 पॉलीटेक्निक हैं, जिनमें छात्र संख्या की कमी का बहाना बना कर कोर्स बंद करने का पत्र प्राविधिक शिक्षा निदेशक की ओर से जारी कर दिया गया है.


 कम प्रवेश संख्या वाले पाठ्यक्रमों में प्रवेश हों, इसके लिए कोई प्रयास भी किए गए या पाठ्यक्रम शुरू किया, प्रवेश हुआ तो ठीक नहीं हुआ तो ताला लगाने का फरमान सुना दिया ?


 शिक्षण संस्थानों और तकनीकि शिक्षा के संस्थानों पर ताला लगाएंगे और तीसरा दशक उत्तराखंड का बनाएँगे, दोनों एक साथ कैसे होगा, ताला लगाने वाले और दावा करने वाले ही जानें !


-इन्द्रेश मैखुरी  

  

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