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पिथौरागढ़ में भर्ती रैली : बेरोजगारी विकराल, व्यवस्था बदहाल !

 


उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में हुई प्रादेशिक सेना (टैरेटोरियल आर्मी) की भर्ती रैली ने  देश में व्यापत चरम बेरोजगारी और किसी भी काम में सरकारी तंत्र की तदर्थता को एक बार फिर से उजागर कर दिया.









 टैरेटोरियल आर्मी 1948 में संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत गठित है. टैरेटोरियल आर्मी की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार टैरेटोरियल आर्मी यानि प्रादेशिक सेना नियमित सेना का अंग है, जो नागरिक प्रशासन को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहयोग करती है और संकट की स्थितियों में आवश्यक सेवाओं की बहाली में भी मदद करती है. साथ ही नियमित सेना को जरूरत के समय सैन्य यूनिट्स भी उपलब्ध करवाती है.   

पिथौरागढ़ में टैरेटोरियल आर्मी के 113 पदों के लिए 12 नवंबर से 27 नवंबर तक भर्ती रैली होनी तय थी. इसमें ओडिसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड के 18 से 42 साल के युवाओं को विभिन्न पदों के लिए शारीरिक मापक परीक्षा और शारीरिक दक्षता परीक्षा में शामिल होना है. पिथौरागढ़ के मिलेट्री स्टेशन को इन परीक्षाओं के आयोजक स्थल के तौर पर निर्धारित किया गया.





लेकिन ऐसा लगता है कि टैरेटोरियल आर्मी की उक्त खुली भर्ती में आने वाले युवाओं की संख्या के बारे में किसी ने कोई अनुमान नहीं लगाया. कुल 113 पदों में से 88 पद सामान्य सैनिक के हैं, सैनिक क्लर्क के 11 पद हैं और कुक, नाई आदि के पद इकाई की संख्या में हैं. भर्ती आयोजकों ने पदों की संख्या देखी होगी और देश में व्याप्त बेरोजगारी की मार से वे अंजान बने रहे !


 पदों की मामूली संख्या के लिए अप्रत्याशित तौर पर हजारों की भीड़ उमड़ी. फौज और नागरिक प्रशासन, दोनों ही इन स्थितियों के लिए तैयार नहीं थे.  इसलिए सारे इंतजाम धराशायी हो गए. 









बेहद दयनीय और खतरनाक स्थितियों में युवाओं को यात्रा करनी पड़ी. रोडवेज की बस की डिक्की में यात्रा करते युवा का वीडियो तो काफी वायरल हुआ.










 बहुत सारे युवाओं ने सड़क पर और वाहनों में रात गुजारी ! 20 रुपये किराये वाली दूरी के लिए हज़ार रुपये की बुकिंग लिए जाने के किस्से अखबारों में छपे हैं. टनकपुर, चंपावत, हल्द्वानी आदि स्थानों पर पिथौरागढ़ जाने की जद्दोजहद में युवाओं को भारी मशक्कत करनी पड़ी और पुलिस की लठियाँ तक झेलनी पड़ी.


20-21 नवंबर को तो अराजकता,अव्यवस्था चरम पर पहुंच गयी. इन दो दिनों में उत्तर प्रदेश के युवाओं की भर्ती परीक्षा की बारी थी. यह अनुमान है कि उत्तर प्रदेश से करीब पंद्रह हज़ार से बीस हज़ार तक युवा भर्ती में शामिल होने आए थे. इस भीड़ का दबाव इतना था कि हालात बेकाबू हो उठे. युवाओं के ज़ोर से सेना का गेट टूट गया, भगदड़ जैसे हालात हो गए और पुलिस ने लाठियाँ भाँज दी. इस भगदड़ से कई युवा घायल हो गए.









टैरेटोरियल आर्मी की इस भर्ती के आयोजन में हद दर्जे की संवादहीनता भी स्पष्ट तौर पर नज़र आ रही थी. संवादहीनता का ही नमूना है कि पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी विनोद गिरी गोस्वामी मीडिया में बयान दे रहे हैं कि अव्यवस्था सेना की वजह से हुई क्यूंकि सेना ने पिथौरागढ़ प्रशसन को बिहार के दानापुर में होने वाली भर्ती के बारे में समय पर सूचना नहीं दी ! हालांकि यह तर्क भी आंशिक रूप से ही सच है क्यूंकि बेरोजगारों की फौज जितनी बड़ी है, उसमें अव्यवस्था का यह कारण आंशिक ही है.


सबसे गज़ब तो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया. जब तक पिथौरागढ़ में अराजकता,अव्यवस्था की स्थितियां बनी हुई थी, तब तक वे नज़र नहीं आए और जैसे ही युवाओं की भीड़ छंटना शुरू हुई, वैसे ही वे पिथौरागढ़ में भर्ती रैली में युवाओं को भात बांटने का फोटो शूट कर आए !








पिथौरागढ़ में टैरेटोरियल आर्मी की भर्ती के दौरान जिस तरह के हालात से भर्ती में आए युवाओं को दो-चार होना पड़ा, वो इस बात की बानगी है कि युवा देश का झुनझुना बजाने वाली भाजपा, उन्हीं युवाओं से बेरोजगारी की दशा में किस लापरवाही और क्रूरता से निपटती है. उत्तर प्रदेश के लोकसेवा आयोग के सामने प्रदर्शन करते युवा भी पुलिस की लाठियों का शिकार हुए और पिथौरागढ़ में भी युवा अव्यवस्था, अराजकता और लाठियां झेलने को मजबूर हुए. सेना को लेकर भाजपाई कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें क्यूँ ना कर लें पर पिथौरागढ़ में एक बार फिर दिखाई दिया कि सेना में जाने के इच्छुक युवाओं के साथ उसका सलूक कैसा है ! कांवड़ यात्रा में युवा कुछ भी करें, उन पर पुलिस फूल बरसाएगी और रोजगार मांगने के लिए आए युवाओं के हिस्से अराजकता, अव्यवस्था और पुलिस की लाठी ही आएगी, यह पिथौरागढ़ में एक बार फिर स्पष्ट हुआ.


 दस साल पहले जिन अच्छे दिनों का ढोल पीटा गया, उस ढोल की पोल  पिथौरागढ़ में एक बार फिर खुल गयी. अगर छह प्रदेशों के लिए 113 पदों पर भर्ती निकली हो और एक राज्य- उत्तर प्रदेश- के ही पंद्रह-बीस हजार युवा उस भर्ती में शामिल होने आ गए हों तो देश में बेरोजगारी किस कदर चरम पर है, यह समझा जा सकता है ! यह बेरोजगारी जुमलों और विज्ञापनों के द्वारा चमकाई गयी छवि से हल नहीं होगी ! एक की तिजोरी भरने और युवाओं का भविष्य गर्क करने वाली सत्ता से वैसे ही निपटना होगा, जैसे वह रोजगार मांगने वालों से निपटती है !


-इन्द्रेश मैखुरी    

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