ये फोटो और फोटोओं में बदलता पट्टी का आकार असली है कि नहीं, पता ही नहीं चल सका.
ऑल्ट न्यूज़ वाले ज़ुबैर कर देते हैं, ऐसी चीजों का फैक्ट चेक. जो उनके नाम मात्र से ही अपना घनघोर शत्रु समझते हैं, उनके बारे में फैलाई गयी गलत बातों का भी फैक्ट चेक करके सही तथ्य बता देते हैं, वो. लेकिन इस बीच वे इतने मुकदमों में उलझा दिये गए हैं कि वे फैक्ट जो देखें कि मुकदमा !
बहरहाल इन पट्टियों के बदलते आकार से 24 साल पुराना किस्सा याद आया. आइसा से मैं छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहा था. अचानक एक अन्य प्रत्याशी पर हमले की खबर आई. कहा गया कि किसी ने उल्टी खुंखरी से उनके सिर पर वार कर दिया है. हम सभी अस्पताल की ओर दौड़े. रात में सिर पर लगे टांकों की संख्या चार थी, अगली सुबह वो आठ प्रचारित हुई, दोपहर तक सोलह और शाम तक बत्तीस हो गयी ! चुनाव खत्म,खोपड़ी सलामत,पट्टी गायब !
एक विधानसभा चुनाव हुआ. फिर एक प्रत्याशी पर ऐसा ही जानलेवा हमला होने की खबर आई. खबर सुन कर दिल घबराया, प्रत्याशी को फोन घुमाया. उनके मुंह से घटना का ब्यौरा सुन कर, तुरंत- तत्काल दो दशक पहले के छात्र संघ चुनाव का तथाकथित उल्टी खुंखरी प्रहार, चुनाव तक बढ़ती टांकों की रफ्तार याद आई. बाद में पुलिस ने स्वयं खुलासा कर दिया कि उक्त जानलेवा हमला, असल में स्वरचित स्टंट था. सिर पर बंधी बड़ी सी पट्टी का विवरण देते हुए एक पुलिस अफसर ने इस नाचीज से कहा कि मेडिकल करने वालों में शामिल नर्स का कहना था कि भारी- भरकम पट्टी के नीचे जो सिर है, उस पर चोट उतनी ही है, जितनी नाखून के खुरचने से आ सकती है !
इन दो किस्सों को सुनाने के पीछे आशय यह है कि संसद में धक्कामुक्की को जो जानलेवा सिद्ध करने का प्रहसन हो रहा है, उसे इस नाचीज जैसे कई लोगों ने पहले भी कई मर्तबा अपनी आंखों के आगे घटित होते देखा है.
पहली बार जब छात्र संघ चुनाव में ऐसा स्टंट हुआ तो हमने माना कि छात्र संघ चुनाव है तो कोई बात नहीं, चलेगा, माफ कर दिया जाए. विधानसभा चुनाव में दो दशक बाद दोहराया गया तो लगा कि विधानसभा चुनाव में छात्र संघ लेवल का स्टंट करना थोड़ा अटपटा है. पर जो कर रहे थे, उनकी उम्र छात्र संघ चुनाव वाली ही थी तो उनके विधानसभा जाने के "बाल हठ" वाली आतुरता को भी समझा जा सकता था.
लेकिन 69 वर्ष का व्यक्ति जो विधायक, सांसद और मंत्री रह चुका है, जिसे लोगों के जिंदा जलाए जाने पर भी कोई रंज न हुआ, वो छात्र संघ चुनाव वाला स्टंट लोकसभा में दोहराए तो विचित्र है. ( गौरतलब है कि ग्राहम स्टेंस और उनके दो नाबालिग बेटों को 1999 में जिंदा जलाने के मामले में उक्त "सज्जन" जिला अदालत से सजा पा चुके हैं और हाईकोर्ट से सबूतों के अभाव में बरी हुए.)
उस समूची पार्टी की बुद्धि पर तरस खाइये कि वो देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि सदन की राजनीति को छात्र संघ चुनाव के सस्ते स्टंटों तक ले आई है ! सारे देश में छात्र- छात्राओं के प्रतिनिधित्व के मंच- छात्र संघों पर ताला लगाएंगे और फिर लोकसभा में छात्र संघ चुनाव के सस्ते स्टंट दिखा कर देश को भरमाएंगे, गज़ब अमृतकाल है, भय्या !
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
Live description of the Year 2001 Election. Just revived those days
ReplyDelete