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बिहार से बाहर बिहार दिवस क्यूँ ?


उत्तराखंड में आजकल पहाड़-मैदान की बहस गर्म है. भाजपा के द्वारा पैदा किए गए हिंदू-मुस्लिम के विभाजन से बात पहाड़-मैदान तक बढ़ गयी है. भाजपा  सरकार में मंत्री रहे प्रेमचंद्र अग्रवाल के द्वारा विभानसभा में की गयी आपत्तिजनक टिप्पणी से यह सिलसिला ज़ोर पकड़ा, लेकिन प्रेमचंद्र अग्रवाल के इस्तीफे के बाद भी थमा नहीं है. ऐसा भी लगता है कि कतिपय लोगों और समूहों को इस मुद्दे का जिंदा रहना अपने वजूद की गारंटी लग रही है. इसलिए वे भरसक प्रयास कर रहे हैं कि इस विभाजन की आग को जितना भड़काया जा सकता है, उतना भड़काया जाए. ऐसे लोग दोनों ही तरफ मौजूद हैं और सोशल मीडिया का गैरजिम्मेदाराना इस्तेमाल आग में घी डालने का काम कर रहा है.


इसी बीच उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने नौ दिन का बिहार स्थापना दिवस का कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की. पहले से ही पहाड़-मैदान की बहस की चपेट में चल रहे उत्तराखंड में इसको लेकर एक नयी बहस खड़ी हो गयी है.









लेकिन क्या भाजपा सिर्फ उत्तराखंड में ही बिहार दिवस मनाने जा रही है ? बिहार दिवस मनाने का यह विचार क्या उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का है ?


जी नहीं, ये भाजपा का केन्द्रीय कार्यक्रम है. अंग्रेजी अखबार- इंडियन एक्सप्रेस में 20 मार्च 2025 को प्रकाशित विकास पाठक की रिपोर्ट के अनुसार भाजपा पूरे देश में बिहार दिवस के कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है. उक्त रिपोर्ट के अनुसार झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा में सात-सात कार्यक्रम आयोजित होंगे, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश,गुजरात और पंजाब में छह-छह, दिल्ली में पाँच, असम, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश और ओडिसा में दो-दो और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडू और केरल में एक-एक कार्यक्रम होंगे.


असम में उल्फ़ा समेत कुछ क्षेत्रीय संगठनों के विरोध के बाद यह कार्यक्रम  स्थगित कर दिया गया है. भाजपा उस तमिलनाडू में भी बिहार दिवस मनाने का इरादा रखती है, जहां के सांसदों को भाजपा के केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में असभ्य तक कह दिया था, उस केरल में भी जिसे प्रधानमंत्री खुद सोमालिया बताने से नहीं चूके.


दावा यह है कि ये बिहार दिवस के ये कार्यक्रम प्रधानमंत्री के एक भारत, श्रेष्ठ भारत अभियान के अंतर्गत हो रहे हैं !


लेकिन अचानक भाजपा को इतना बिहार प्रेम क्यूं जाग गया कि उसने पूरे देश में बिहार दिवस मनाने की घोषणा कर दी ? उसका सीधा सा जवाब है कि इस साल- 2025 में बिहार विधानसभा के चुनाव हैं. बिहार के लोग पूरे देश में फैले हुए हैं.


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भाजपा का आकलन है कि देश में प्रवासी बिहारियों की संख्या लगभग दो करोड़ है और इनमें से बड़ी संख्या में चुनाव में वोट देने बिहार जाते हैं. इन्हें ही साधने के लिए भाजपा पूरे देश में बिहार दिवस का कार्यक्रम कर रही है. इसलिए उसका लक्ष्य है कि दूसरे राज्यों में बिहार दिवस के हर आयोजन में कम से कम पाँच सौ बिहारी प्रवासी शामिल हों. 50 बिहारी परिवारों पर भाजपा एक प्रभारी नियुक्त करने का इरादा भी रखती है.


जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि भाजपा को कोई अचानक बिहार प्रेम नहीं जागा है. बिहार प्रेम होता तो पिछले दस सालों में केंद्र में और विभिन्न राज्यों में उसकी सरकार है, लेकिन इस दौरान तो ऐसा कोई आयोजन भाजपा ने नहीं किया ! इसलिए यह सीधा-सीधा आसन्न बिहार विधानसभा के चुनाव को साधने की उसकी कोशिश है. बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार की हालत पहले ही काफी खराब हो चली है. बीते दिनों राष्ट्रगान के दौरान वे जिस तरह की हरकतें कर रहे थे, उससे उनकी जर्जर दशा स्पष्ट है. भाजपा खुद भी चाहती है कि उनका “एकनाथ शिंदे” कर दिया जाये. भाजपा की यह पुरानी साध है कि बिहार में उसका अपना मुख्यमंत्री हो. इसलिए बिहार दिवस को पूरे देश में ले जा कर वह बिहार विधानसभा के चुनाव को ही साधने की कोशिश कर रही है.


लेकिन यहीं पर भाजपा के देश भर में बिहार दिवस मनाने के चुनावी ड्रामे की हवा भी निकाली जानी चाहिए. लगभग पिछले बीस साल से नीतिश कुमार के कंधे पर सवार हो कर भाजपा बिहार की सत्ता पर काबिज है. वर्तमान में बिहार में दो उपमुख्यमंत्री समेत बड़ी संख्या में मंत्री भाजपा के हैं. कुछ महीनों बाद चुनाव है, लेकिन भाजपा नेताओं को बिहार सरकार में शामिल करने का सिलसिला जारी है.  फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह में भी सात भाजपा नेताओं को बिहार सरकार में मंत्री बनाया गया है.


लेकिन बिहार की सरकार पर पूर्ण वर्चस्व के बावजूद बिहार की हालत खराब क्यूं है ? भाजपा का अपना आकलन है कि 2 करोड़ बिहार के लोग दूसरे प्रदेशों में हैं. उनमें से अधिकांश मेहनत मजदूरी करते हैं और बहुत मुश्किल से अपना गुजर-बसर कर पाते हैं. भाजपा उनको बिहार दिवस के बहाने साधना चाहती है ताकि उनका वोट मिल सके ! क्यूं ? क्या इसलिए कि बीते बीस बरस में भाजपा के बिहार की सत्ता में रहते वहाँ शिक्षा, रोजगार के अवसर पैदा ही नहीं किए गए और मजदूरी करने के लिए इन प्रवासियों को देश भर की खाक छाननी पड़ी ?


नीति आयोग द्वारा जारी एसडीजी इंडिया इंडेक्स यानि सतत विकास के आंकड़ों में बिहार भाजपा और नीतिश कुमार के राज में सबसे फिसड्डी राज्य बना हुआ है.


बिहार में 2022-23 में जो जाति आधारित गणना और सामाजिक सर्वेक्षण हुआ, उसमें पाया गया कि बिहार में घनघोर गरीबी है. लगभग 34.13 प्रतिशत बिहार छह हज़ार रुपया महीने से कम आय पर जिंदा है. 40 प्रतिशत से अधिक परिवार झोपड़ियों अथवा बिना पक्की छत वाले घरों में रहते हैं. एससी-एसटी-ओबीसी बिहार के समाज का 85 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन उनमें से केवल 1.57 प्रतिशत लोगों के पास सरकारी नौकरी है.


अपराध बिहार में चरम पर है. आए दिन आपराधिक घटनाएं हो रही हैं. मुजफ्फरपुर शेल्टर होम जैसे जघन्य कांड के बावजूद महिलाओं-बच्चियों के विरुद्ध अपराधों का सिलसिला जारी है. दलितों, गरीबों की हत्याओं का सिलसिला भी अनवरत है. होली के इर्दगिर्द ही हुए अपराधों को ही देखें तो अपराधियों के निरंकुश होने का अंदाज साफ लगाया जा सकता है.


बीस साल सत्ता की मलाई उड़ाने के बाद भाजपा यदि चाहती है कि बिहार की इस दुर्दशा को वह देश भर में बिहार दिवस के पर्दे से ढांप लेगी तो उसे बताया जाना चाहिए कि ऐसा नहीं होने जा रहा है.


उत्तराखंड या किसी भी अन्य प्रदेश में बिहार दिवस मनाए जाने का विरोध इस वजह से नहीं किया जाना चाहिए कि हमारे प्रदेश में क्यूं मना रहे हो बल्कि इस आधार पर किया जाना चाहिए कि उस प्रदेश को गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आवासहीनता और अपराध में धकेल कर भाजपा उन्हें फिर से ठगने और छलने के लिए यह बिहार दिवस मनाने का नाटक कर रही है. उत्तराखंड को भी भाजपा ने ठगा-छला है और बिहार को नए सिरे ठगने की तैयारी वह कर रही है ! इसलिए भाजपा के इस नाटक का पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए.


-इन्द्रेश मैखुरी         

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