हमारे विश्वविद्यालय गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के केंद्र हों ना हो पर नित नए कारनामों के केंद्र जरूर हैं !
अब इस खबर को देखिये- कुमाऊं विश्वविद्यालय ने भौतिक विज्ञान विभाग में पावन कुमार मिश्रा का चयन किया और नियुक्ति प्रमोद कुमार मिश्रा को दे दी !
और यह कारनामा कोई आजकल का नहीं बल्कि बीस साल पुराना है. जिन मिश्रा जी को दूसरे मिश्रा जी की जगह नियुक्ति दी गई है, वो एसोसिएट प्रोफेसर हो चुके हैं, इन बीस सालों में !
विश्वविद्यालय का मासूम तर्क देखिये, वो फरमाते हैं कि दोनो अभ्यर्थियों का शॉर्ट नेम- पीके था, इसलिए इन पीके की जगह पर उन पीके को नौकरी दे दी गयी ! नियुक्ति पत्र दे कर लगता है कि वेरिफिकेशन करने वाले अधिकारी भी पी के टुन्न हो कर सो गए !
ये भी बता दीजिये कि और कितने समान शॉर्ट नेम वालों की अदला- बदली कर दी जनाब आपने, पिछले बीस- तीस वर्षों में ???
गज़ब ठैरा महाराज अपने विश्वविद्यालयों का हाल !
एक व्यक्ति बीस साल से यही सिद्ध करने की कोशिश में लगा है कि वो सही व्यक्ति है, जिसको नियुक्ति मिलनी थी, उसका हक मार कर दूसरे को दे दिया गया ! जो व्यक्ति चयनित हो कर बीस वर्षों में प्रोफेसर होने की अवस्था तक पहुंच गया होता, वो बीस साल से अदालतों के चक्कर ही काट रहा है- न्याय की कच्छप गति का भी बलिहारी है !
-इन्द्रेश मैखुरी
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